काव्य : चन्द्रयान – 3 – डॉ.अवधेश तिवारी ‘भावुक’ दिल्ली

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चन्द्रयान – 3

आश्चर्यचकित हो देख रहा जग भारत की युवा-शक्ति को,
याद करेगी इक्कीसवी शताब्दी भारत की उपलब्धि को।

दुनिया में जितने भी राष्ट्र हैं
सबसे अधिक युवा हैं यही,
जहॉ भी अपने पग रख देते
छाप छोड़ देते हैं वही।

नित-नवीन कीर्तिमान को रच कर करें अचम्भित सृष्टि को,
आश्चर्यचकित हो देख रहा जग, भारत की युवा-शक्ति को।

इस जग मे जितने भी देश है
हिंदुस्तान अनोखा है,
शांति,विश्व – बंधुत्व , प्रेम का
अद्भुत बना झरोखा है।

सभी पडोसी देश हमारे , देख अचम्भित उन्नति को,
आश्चर्यचकित हो देख रहा जग,भारत की युवा-शक्ति को।

“चन्द्रयान-3″ के द्वारा
नाम अमर कर डाला है,
परमाणु – शक्ति होकर भी
युद्ध हमें नहीं भाता है।

विकसित राष्ट्र सभी दुनिया के, श्रेष्ठ्तम माने बुद्धि को,
आश्चर्यचकित हो देख रहा जग,भारत की युवा-शक्ति को।

सबसे बड़ा गणतंत्र हमारा
सारे जग को लगता प्यारा,
दुनिया का हर देश चाहता
समरसता,समभाव हमारा।

भारत-भू की सन्तति,”भावुक” करे प्रणाम इस धरती को,
आश्चर्यचकित हो देख रहा जग,भारत की युवा-शक्ति को…

डॉ.अवधेश तिवारी ‘भावुक’
दिल्ली

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