आज़ादी के तराने गूंज रहे हैं वतन में और चंद्रयान की सफलता ने होंसला बढ़ाया है : इप्टा द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की नाट्य प्रस्तुति

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आज़ादी के तराने गूंज रहे हैं वतन में और चंद्रयान की सफलता ने होंसला बढ़ाया है : इप्टा द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की नाट्य प्रस्तुति

वरिष्ठ पत्रकार डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट

इन्दौर।
आज़ादी का जश्न देश प्रदेश और भारतीयों द्वारा विदेशों में भी मनाया गया । कई स्थानों पर स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता दिवस से जुड़े कार्यक्रमों की श्रृंखला जारी है ।
बीती शाम चन्द्रयान की सफ़ल लैंडिंग ने रोमांच भर दिया और देशभक्ति उभर कर आई । राजवाड़ा पर जश्न मनाया तिरंगा लहराया ।
इस कड़ी में देश के स्वच्छ शहर इंदौर में गत दिनों प्रमुख नाट्य संस्था इप्टा द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन पर केंद्रित नाट्य प्रस्तुति आयोजित हुई ।
इप्टा से जुड़े पत्रकार चिंतक श्री हरनाम सिंह ने बताया कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में ” अंग्रेजों भारत छोड़ो…” आंदोलन निर्णायक था। मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान से गूंजी यह आवाज देश के दूरगामी ग्रामीण अंचलों तक शिद्दत के साथ सुनी गई। इसका असर इंदौर पर भी हुआ था। इसी आंदोलन की स्मृति को सजीव किया इंदौर इप्टा (भारतीय जन नाट्य संघ) इकाई के कलाकारों ने। बेहद विस्तृत आयाम में फैले इतिहास के इस अंश को 45 मिनट की समयावधि में समेटना आसान काम नहीं था , पर मनोयोग से सभी कलाकारों ने भूमिका से न्याय करते हुए पूर्णता प्रदान की ।
नाट्य प्रस्तुति में भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि, आंदोलन के दौरान अरुणा आसफ अली द्वारा झंडा फहराया जाना, पुलिस द्वारा अश्रु गैस के गोले फेंकना, क्षेत्र की महिलाओं द्वारा आंदोलनकारियों को गीले तोलिए देकर उन्हें गेस के असर से बचाना, अंग्रेजों द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करना, कांग्रेस का विरोध, राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी की पृष्ठभूमी में मध्य प्रदेश के इंदौर, महाराष्ट्र के चिमूर, उत्तर प्रदेश के बलिया, बंगाल के मिदनापुर तक विस्तारित हुए आंदोलन का असर अन्य क्षेत्रों पर भी दिखाया गया। मुंबई के कपड़ा मिलों के मजदूर, तेलंगाना, वर्ली, तिभागा में किसानों के संघर्ष से होते हुए बंगाल के अकाल, आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर मुकदमा, नौसेना का विद्रोह से कहानी निरंतर जुड़ती चली गई।
नाटक में आंदोलन की नायिका अरुणा का आसिफ अली से प्रेम विवाह को वर्तमान संदर्भ में देखा गया। देश की आजादी के जश्न में विख्यात नृत्यांगना- अभिनेत्री जोहरा सहगल द्वारा मुंबई की सड़कों पर आमजन के साथ नाचने की प्रस्तुति बेहद प्रभावशाली थी। पात्रों द्वारा सहज एवं निर्बाध संवाद शैली ने नाटक की गति को बनाए रखा, बोझिल होने से बचाया। विस्तृत कथानक को अल्प अवधि में बिना किसी अतिरिक्त नाटकीयता से प्रस्तुत करने के पीछे निर्देशक जया मेहता सहनिर्देशक गुलरेज खान संगीत देने में शर्मिष्ठा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विनीत तिवारी ने सूत्रधार की भूमिका के साथ शोध कार्य में भी हाथ बटाया।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन समय में इंदौर होलकर कॉलेज के चार युवा विद्यार्थी जिनमें एक छात्रा भी थी (आनंद सिंह मेहता, इंदू पाटकर, जोहरी लाल झांझरिया, नाथूलाल जैन) गांधी जी के आव्हान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए ग्वालिया मैदान पहुंचे थे।
वहां से लौटकर इन युवा विद्यार्थियों ने इंदौर में आंदोलन को विस्तार दिया। नाटक में इनका उल्लेख रोमांचित करने वाला रहा।
नाट्य प्रस्तुति में मकबूल मोइनुद्दीन के गीत ” यह जंग है जंगे आजादी… और शैलेंद्र का गीत ” तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर… ने आजादी के मूल्यों को सहेजने और सुखद मानवीय जीवन की आशा, और विश्वास को बनाए रखने के लिए दर्शकों को प्रेरित किया।

नाट्य कलाकार प्रमोद बागड़ी, सारिका श्रीवास्तव, उजान, अथर्व, रवि शंकर, शिवम, अनंत, नंदिनी, हर्षिता के सधे और आत्मविश्वास से भरे अभिनय ने दर्शकों को खासा प्रभावित किया ।
सुधीजनों एवं दर्शकों ने सीमित संसाधनों में इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को नाट्य विधा की सजीव प्रस्तुत करने पर इप्टा संगठन को बधाई दी,करतल ध्वनि से उत्साहित हो सम्मान दिया ।

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