काव्य : चंद्रयान – भार्गवी रविन्द्र बेंगलुरु

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चंद्रयान का द.ध्रुव पर ऐतिहासिक क्षण

ये सुदिन अद्भुत, अप्रतिम, अप्रत्याशित, विलक्षण
ये है अलौकिक, ऐतिहासिक, आनंदातिरेक क्षण
वैज्ञानिकों ने अपनेआप से किया था जो एक प्रण
आज फलीभूत हुई उनकी कर्तव्यनिष्ठा औ’ समर्पण।

ऐतिहासिक विजय पर हर भारतवासी है प्रफुल्लित
करतल ध्वनि से जयकार करें हर्षित मन स्नेहसिक्त
रच दिया इतिहास, किया माँ-भारती को गौरवान्वित
गगन में तीन रंग की आभा ,रोम रोम हुआ पुलकित।

आज समस्त विश्व में धूम है भारत के वैज्ञानिकों की
विदेशों में चर्चा है देश की गौरवमयी उपलब्धियों की
मेहनत रंग लाई, हुए सपने साकार बुद्धिजीवियों की
मार्ग प्रशस्त कर दिया इन्होंने आने वाली पीढ़ियों की।

दोहराएगा शून्य से अनंत का अभियान जहाँ सदियों तक
याद रखेगा चंद्रयान का द.ध्रुव पर पदार्पण सदियों तक
हम रहे न रहे हिम्मत-हौसले की गूँज रहेगी सदियों तक
धैर्य-चिंतन की, उम्मीद और लगन की गाथा सदियों तक।

अंतरिक्ष में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाएँगे शान से
चाँद के धरातल पर तिरंगा युगों तक फहराएँगे शान से
आसमान गूँज उठेगा वंदेमातरम और जन मन गन गान से
चाँद कवि की कल्पना से निकलकर जुड़ गया इंसान से।

इन वैज्ञानिकों की कर्मठता को करता हर देशवासी नमन
इनकी लगन,एकाग्रता औ निस्वार्थता का देश करता वंदन
देश का नाम आसमान पर अंकित कर जीता हम सबका मन
मानवता चिर ऋणी रहेगी तुम्हारा, हे कर्मयोगियों तुम्हारा अभिनंदन।

भार्गवी रविन्द्र
बेंगलुरु

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