काव्य : समर्पण – राजेन्द्र पुरोहित, जोधपुर

समर्पण

चाँद, तू बात तो सुन,
चाँद, तू बात समझ।

वो जो आये थे कभी,
जीत की आस लिये।
तेरी धरती की फ़तह,
यही एक प्यास लिये।
धरा पर तेरी, ध्वजा,
लगा कर मुस्कुराये।
चाँद को जीत लिया,
बोल कर खिलखिलाये।
चाँद, तूने उन्हें भी,
प्रेम, सम्मान दिया।
जीत के दर्प को भी,
विजय का मान दिया।

परन्तु, हम हैं अलग,
परन्तु, हम हैं जुदा।
प्यार भगवान यहाँ,
मुहोब्बत ही है ख़ुदा।
चाँद, पहचान हमें,
देख और जान हमें।
तू जिसके भाल पर है,
उसी के हम पुजारी।
वार-त्यौहार तेरी,
आरती है उतारी।
भानजे हम हैं तेरे,
तू हमारा मातुल।
व्योम पर शोभित तू,
मनोरम और मंजुल।

ये कोई यान नहीं,
थाल पूजा का समझ।
तेरे अपने ही हैं हम,
हमें दूजा न समझ।
हमारे प्रेम को तू
हृदय के पार कर ले।
हमारी भेंट को तू,
आज स्वीकार कर ले।
चाँद, तू बात तो सुन,
चाँद, तू बात समझ।

राजेन्द्र पुरोहित,
जोधपुर

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