काव्य : गोस्वामी तुलसीदास की दार्शनिकता – विनोद शर्मा, गाजियाबाद

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गोस्वामी तुलसीदास की दार्शनिकता

राम भक्ति में विभोर तुलसी,
जीने की सब राह दिए |
जीवन की लीला का दर्शन,
बता सभी को सजग किए ||

किस तरह निभा संबंधों को,
जग में प्रेम प्रसार किया |
कैसे आदर भाव प्रेरणा,
सबको उसका ज्ञान दिया ||
राज अर्थ अरु धर्म नीति का,
आपस में व्यवहार लिए |
आदर्श दिया देशभक्ति का,
सुरक्षा में सब ही जिएँ ||
राम भक्ति में… |1

नैसर्गिकता की प्रधानता,
जीवों के संबंधो को |
पशु पक्षी और वनस्पति के,
भू जल के सरंध्रो को ||
पर्वत श्रेणी नदी घाटियाँ,
जीवन को सभी चाहिए |
कुटिया संग महल की दुनिया,
उपयोगी सबको रखिए ||
राम भक्ति में… |2

रत्ना से जो दर्शन सीखा,
दुनिया को समझाया है |
त्याग भावना प्रेम परस्पर,
मानव को बतलाया है ||
विज्ञान ज्ञान अध्यात्म का,
सहज रूप दर्शाया है |
ऋषि मुनियों ज्ञानी लोगों का,
आदर कर सिखलाया है ||
राम भक्ति में…. |3

शैव वैष्णव की साध्यता,
प्रकट की प्रत्यक्षता में |
अंतोदय का भाव मित्रवत्,
दिखला दिया दक्षता में ||
छोटा-बड़ा ऊँच-नीच नहीं,
दृढ़ विचार अपक्षता में |
सत्य धर्म में बैर न देखा,
जीना शुद्ध अक्षता में ||
राम भक्ति में… |4

प्रतिपादन जीवन शैली का,
अवधारण है मानव को |
देवतुल्य सभी जीव धरा के,
अर्चन भी है दानव को ||
शांत सुभाउ प्रपालना हो,
वर्जन तो है विप्लव को |
कर्तव्य कर्म की निष्ठा में,
स्वागत शिल्प अभिनव को ||
राम भक्ति में… |5

जीवन की बेला में तुलसी ने,
संघर्षों का अर्थ दिया |
सरोकार सामाजिकता का,
नैतिकता अनुसरण किया ||
जागरूक उत्कृष्ट वैधता,
सियाराम का नाम लिया |
कर्तव्य साधना साध जग में,
द्वेष-राग को मिटा दिया ||
राम भक्ति में… |6

भूतसर्ग पयोधि की महिमा,
उत्सर्ग विभूति जग में |
पाषाण विमल अविचल मन से,
कर्तव्यनिष्ठ हर पग में ||
प्रेरक सूत्रमान यहाँ.पर,
हितकर है सबके दृग में |
महिमा जगत बखान राम की,
बसि तुलसी के रग रग में ||
राम भक्ति में… |7

मात पिता की आज्ञकारिता,
भ्रातृत्व प्रेम जगत में |
राजा रंक न भेद सोच में,
यह साधारण जनमत में ||
केंद्र बिंदु परिधि मर्यादा,
रहें सभी सबके हित में |
नारी का सम्मान जगत में,
धर्मनिष्ठ है परिमित में ||
राम भक्ति में …|8

© विनोद शर्मा,
गाजियाबाद (उ. प्र.)

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