बाबूलाल गौर : उतर प्रदेश का छोरा मध्य प्रदेश का नायक बना -डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

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बाबूलाल गौर : उतर प्रदेश का छोरा मध्य प्रदेश का नायक बना –डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल

जो कर्मशील और भाग्यवान होते हैं उनके लिए सीमायें बाँध नहीं सकती .उनका अदम्य साहस और इच्छा शक्ति ने उन्हें किसी बंधन में नहीं बाँध सका .ऐसे अदम्य साहस के धनीश्री बाबूलाल गौर थे.
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन हो गया. वो अगस्त 2004 से नवंबर 2005 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. लो ब्लड प्रेशर की शिकायत पर 7 अगस्त, 2019 को उन्हें भोपाल के एक अस्पताल में भर्ती किया गया था. वहां उनकी तबीयत बिगड़ी और बुधवार, 21 अगस्त, 2019 की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली. बाबूलाल गौर ने एक असाधारण ज़िंदगी जी. अपने पिता की दुकान चलाने से इनकार कर दिया क्योंकि मूल्य आड़े आ रहे थे. एक रुपया दिहाड़ी पर कपड़ा मिल में मज़दूरी की. राजनीति की. मंत्री बने. मुख्यमंत्री बने. भोपाल की गोविंदपुरा की सीट के अलावा एक और नाम अपनी पहचान के साथ चस्पा किया – बुलडोज़र. . अब बाबूलाल गौर शांत हो गए हैं. .
पॉलिटिकल किस्सों की ख़ास सीरीज़- मुख्यमंत्री की इस कड़ी में बात उस लड़के की, जो पैदा उत्तर प्रदेश में हुआ था. जिसने शराब कंपनी में काम करने के लिए गांव और राज्य दोनों छोड़ दिया. मध्यप्रदेश आया और शराब कंपनी में नौकरी की. संघ की शाखा में जाने लगा, संघ के कहने पर शराब की दुकान छोड़ दी और घर लौट गया. वहां से भोपाल वापसी हुई, कपड़ा मिल में मज़दूरी की, ट्रेड यूनियन की सियासत करते हुए विधायक बना और एक वक्त आया, जब वो सूबे का मुख्यमंत्री बन गया. ये कहानी है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की.
. जिनका जन्म तो उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ. लेकिन 44 सालों से वो मध्यप्रदेश की एक सीट से विधायक हैं. लेकिन न पहचान सिर्फ इतनी सी है, और न ही पहचान इस नाम से है. आप जिस नाम को जानते हैं. वो नाम है बाबूलाल गौर का. 2 जून 1930 की पैदाइश. उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ के नौगीर गांव में. जब वो पैदा हुए तो देश में अंग्रेजों का राज था. गांवों में दंगल हुआ करते थे. ऐसे ही एक दंगल में बाबूलाल गौर के पिता श्री राम प्रसाद की जीत हुई. वो जीते तो अंग्रेजों ने उन्हें एक पारसी शराब कंपनी में नौकरी दे दी. लेकिन नौकरी के पीछे गांव छूटा, राज्य छूटा. आंख खुली तो सामने नया शहर था भोपाल. जगह थी बरखेड़ी. कैलेण्डर में साल लगा था 1938. कुछ दिन की नौकरी बीती तो कंपनी ने खुद की दुकान दे दी. उसी दुकान में काम करने लगे. शराब बेचने लगे.
16 बरस हुए तो बाबूलाल संघ की शाखा जाने लगे. वहां कहा गया, शराब बेचना छोड़ दो. इसी बीच पिता की मौत हो गई. बात ये आई कि शराब की दुकान बाबूलाल गौर के नाम कर दी जाए. बाबूलाल ने शराब की दुकान चलाने से मना कर दिया. गांव लौट गए. खेती की कोशिश, वो उनके बस की नहीं थी. वापस भोपाल लौट आए. कपड़ा मिल में मजदूरी करने लगे. कपड़ा मिल में मजदूरी करते बाबूलाल गौर को रोज़ एक रुपये दिहाड़ी मिलती. बाबूलाल बताते हैं, लाल झंडे वाली यूनियन में थे. मांगों को लेकर वो लोग अक्सर हड़ताल कर देते, मांगों का पता नहीं. ये जरूर होता कि हड़ताल वाले दिन की मजदूरी कट जाती. ये सब देख वो राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस में चले गए. वहां भी निराशा ही हाथ लगी. थोड़ा संघ की शाखा में जाने का जोर, थोड़ा गोवा मुक्ति आंदोलन के सत्याग्रह में शामिल रहने का अनुभव. नतीज़ा ये रहा कि मजदूरों की बात रखने के लिए भारतीय मजदूर संघ बना और बाबूलाल गौर का नाम संस्थापक सदस्यों में लिखा गया. इस समय साथ ही उनकी पढ़ाई चल रही थी. बीए-एलएलबी हो गए.
इस दौरान ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में शामिल रहे. 1956 में पार्षदी लड़े. हार गए. साल 1972 आया. उन्हें जनसंघ की ओर से विधानसभा टिकट मिला. सीट वही, भोपाल की गोविन्दपुरा. आम तौर पर पार्टियों के गढ़ होते हैं, ये सीट जल्द ही बाबूलाल गौर का गढ़ बनने वाली थी. लेकिन राह आसान नहीं थी. बाबूलाल गौर अपना पहला चुनाव हार गए. कोर्ट में पिटीशन डाली. पिटीशन जीती फिर 1974 में उपचुनाव हुए बाबूलाल जीते और पहली बार विधानसभा पहुंचे.
साल 1975 आया. इमरजेंसी वाला साल. उधर जयप्रकाश नारायण का आंदोलन, जिसमें बाबूलाल गौर भी खूब एक्टिव रहे. 27 जून 1975 को विरोध में बैठे. मीसा में गिरफ्तार हुए. जेल में रहे. जेपी की नज़रों में आ चुके थे. उनका फोन आया. कहा, चुनाव लड़ो. गौर ने कहा, लेकिन मैं तो जनसंघ का आदमी हूं. वही तय करेंगे मेरे बारे में. इसके बाद गौर ने कुशाभाऊ ठाकरे से पूछा. ठाकरे ने गेंद लाल कृष्ण आडवाणी के पाले में डाली. आडवाणी ने जयप्रकाश से बात की और नतीज़ा ये रहा कि अगले चुनावों में बाबूलाल जनता पार्टी से चुनाव लड़े और जीते. जेपी भोपाल आये तो गौर के सिर पर हाथ रखा. आशीर्वाद दिया. जिंदगी भर जनप्रतिनिधि बने रहने का. उस बात को 43 साल हो गए, गौर आज तक नहीं हारे.
बाद के सालों में सरकारें आती-जाती रहीं. बाबूलाल गौर भी मंत्री बने. 90 से 92 तक सुन्दरलाल पटवा की सरकार रही. बाबूलाल गौर को नया नाम दे गई, बुलडोजर मंत्री. वो अतिक्रमण हटाने के मामले में सख्त थे. कई किस्से सुनाए जाते हैं. कैसे गौतम नगर में अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए गौर ने सिर्फ बुलडोजर खड़ा करके इंजन चालू करा दिया और अतिक्रमण अपने-आप गायब हो गया. वीआईपी रोड पर झुग्गियां आड़े आईं तो भी बुलडोजर चलवाया. बुलडोजर चलाने में अधिकारी पीछे हट जाते थे, गौर नहीं. गौर बताते हैं, बुलडोजर रोकने को नोटों से भरे सूटकेस आते थे, लेकिन बुलडोजर रुकते नहीं थे.
एक वॉरंट और एक राजनीतिक महात्वाकांक्षा ने बाबूलाल को मुख्यमंत्री बना दिया. 74 साल की उम्र में. दरअसल 2003 के एमपी चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में लौटी. उमा मुख्यमंत्री बनीं. फिर एक साल के अंदर ही उनके नाम एक वॉरंट जारी हो गया. हुबली की अदालत से. दस साल पुराने एक राजनीतिक मामले में. बीजेपी ने नैतिकता के आधार पर उनसे इस्तीफा देने को कहा. उमा को भी लगा कि इससे उनका राजनीतिक कद बड़ा हो जाएगा. उन्होंने खड़ाऊं की तरह सत्ता बाबूलाल को सौंपी.
यहां एक जरूरी सवाल का जवाब पा लेते हैं. उमा ने बाबूलाल को क्यों चुना. सबके सामने तो वह वरिष्ठता का तर्क देती रहीं. लेकिन सब जानते थे. बाबूलाल कमजोर हैं. प्रदेश भर में आधार नहीं रखते. उमा के लिए वापसी करना आसान होगा. क्योंकि ये वही बाबूलाल गौर थे, जिन्हें उमा टिकट वितरण की मीटिंग तक में नहीं आने देना चाहती थीं. वो आते तो कहा जाता, इन्हें टिकट ही मत दो. ये सब तब हो रहा था, जब दिग्विजय सिंह की सरकार के समय बाबूलाल गौर नेता प्रतिपक्ष थे. एक बार तो गौर इससे आहत हो मीटिंग से उठकर चले गए. और बाहर स्टूल पर धरना सा देने लगे.
एक बात और कही जाती है. उमा इसलिए भी बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाने को राजी हो गईं क्योंकि वो पिछड़ा वर्ग से आते हैं. जाति से यादव हैं. लेकिन खुद बाबूलाल गौर ने कभी ‘यादव’ सरनेम इस्तेमाल नहीं किया. असली नाम बाबूराम यादव था. स्कूल में पढ़ते थे, वहां दो बाबूराम यादव और थे. एक दिन टीचर बोले जो मेरी बात “गौर” से सुनेगा और सवाल का सही जवाब देगा. उसका नाम बाबूराम गौर कर दिया जाएगा . बाबूराम यादव जवाब दे गए. बाबूराम गौर बन गए. भोपाल वालों ने बाबूराम को बाबूलाल कहना शुरू किया तो नाम ही बाबूलाल गौर रख लिया.
सीएम पद से हटने के बाद बाबूलाल घर नहीं बैठे. शिवराज सरकार में वो वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने. तब से अब तक उनकी जीभ का उद्योग भी जारी रहा. कुछ नमूने आप भी चखिए.
1 एक रूसी नेता की महिला ने मुझे धोती कुर्ता में देखा. फिर पूछा, धोती में जो जिप नहीं होती. आप इसे कैसे पहनते हैं. मैंने जवाब दिया. मुझे पहनना भी आता है और धोती उतारना भी.
2 अगर मैं सरनेम में यादव लगाता तो पार्टी मुझे विधायकी का टिकट भी न देती, मुख्यमंत्री बनाना तो दूर की बात है.
3 चेन्नई में यौन अपराध कम हैं क्योंकि महिलाएं पूरे कपड़े पहनती हैं.
तीन नमूने तो जनरल हुए. अब एक वो सुनिए जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी की खिल्ली उड़ाई. वह भी शिवराज सरकार में गृह मंत्री रहते हुए. किसी ने गौर से कहा-
‘भोपाल को अब स्मार्ट सिटी बनाया जा रहा है, आप तो पहले ही इसे ग्रीन सिटी बना चुके हैं.’
गौर ने जवाब दिया,
‘दाने नहीं खाने को और चले स्मार्ट सिटी…’ (बनाने को नहीं कहा था, लेकिन सब समझ गए).
मध्य प्रदेश के साथ भोपाल का एक मात्र विधायक, मंत्री, मुख्य मंत्री जो जन सामान्य से बहुत सुगमता और सरलता से सबसे मिलने वाले और हर किसी के सुख दुःख में शामिल होना उनकी आदत थी .कभी भी उनको आमंत्रित किया जाता तत्काल पहुंच जाते .उनके चाहने वाले किसी भी पार्टी और वर्ग के हो उनकी पूँछ परख करना और जितना अधिक उपकार करना उनका चरित्र रहा .श्री गौर साहब के अनेकों अनेक स्मर्तियाँ हजारों लोगों के बीच में हैं .
मृत्यु अत्यंत दुःख दे होती हैं पर जो व्यक्ति फर्श से अर्श तक पहुंचा आखिर उसमे कुछ न कुछ तो अवश्य रहा होगा ,इसीलिए आज सब पार्टियों ने उनका खोना ऐसा पाया जैसे वह सबका साथी रहा हो ,


विन्रम श्रद्धांजलि .
विद्यावाचस्पतिडॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन,
संरक्षक शाकाहार परिषद् A2 /104 पेसिफिक
ब्लू नियर डी मार्ट ,होशंगाबाद रोड,
भोपाल 462026 मोबाइल 09425006753

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