लघुकथा : इंतजार – सुमन चन्दा लखनऊ

147

लघुकथा

इंतजार

मन्नू, तू अपने साथ ये किचन सेट भी ले जा, तेरी पसन्द का बेसन का लड्डू भी बनाया है इसे भी पैक कर ले। सरिता देवी आज बहुत खुश थी। उनका बेटा और नव विवाहित बहू दोनो पहली बार पूना जा रहे थे। मुन्नू की नौकरी डछब् में साफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर है और पत्नी भी एक फाइनेंस कम्पनी में बतौर सी0ए0 काम कर रही थी। सरिता देवी की वर्षो की तपस्या जैसे सफल हो गयी थी।
20 वर्ष पूर्व सरिता देवी के पति के आकस्मिक निधन से उनका पूरा परिवार व घर की आर्थिक व्यवस्था जैसे हिल सी गयी थी। दोनो बच्चे बहुत छोटे थे और घर पर कमाई का कोई और जरिया न था। आरम्भ के दिनों में बच्चों का ट्यूशन कर कई छोटी-छोटी संस्थाओं में काम करके सरिता देवी ने घर को भी किसी तरह सम्भाला। क्योंकि सरिता देवी के पति सरकारी बैंक के कर्मचारी थे इस वजह से अनेक कोशिशों और कागजी कार्यवाही के बाद उसी बैंक मे सरिता देवी को क्लर्क के पद पर नियुक्त कर लिया गया। पति के गुजरने के बाद उन्हे ससुराल पक्ष और मायके पक्ष की तरफ से कोई मदद नही मिली। जीवन के संघर्ष के दौर में सरिता देवी निहायत अकेली थी, उनकी लगन और कर्तव्यनिष्ठा ही उनके लिए सब कुछ था। परिवार और समाज से उन्हे मात्र सान्त्वना और सहानुभूति के शब्द ही मिले। बड़ी लड़की तनु ने रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर पढ़ाई पूरी कर कैमिकल फैक्ट्री में नौकरी करना शुरू कर दिया। दो-तीन वर्षो बाद वह विवाह कर मुम्बई चली गई।
मन्नू ने छप्ज् इलाहाबाद में दाखिला ले लिया था, सरिता देवी ने बैंक से शिक्षा ऋण लेकर मन्नू की पढ़ाई पूरी करायी। लड़के की अच्छी पढ़ाई व तनख्वाह देखकर कई जगहों से रिश्ते आने शुरू हो गये थे। सरिता देवी ने अपने शहर में ही एक सुशिक्षित परिवार की लड़की से मन्नू की शादी कर दी। बहू ने सी0ए0 की पढ़ाई की थी और पूरा परिवार इस सम्बन्ध से बहुत खुश था। बहू के आ जाने से सरिता देवी प्रसन्न दिखाई देती थी और बहू का ऐसा ख्याल रखती थी मानो उनकी बेटी मिल गयी हों। मन्नू और राशि पूरी पैकिंग कर पुणें चले गये।
सरिता देवी शारीरिक और मानसिक तनाव को झेलते-झेलते परेशान सी हो गयी थी और बैंक कार्य के लिए अपने आपको पूरी तरह से असमर्थ पा रही थी। मन्नू के नौकरी पर लग जाने वे वह थोड़ा राहत महसूस कर रही थी और उसे विश्वास था कि उनका लड़का आगे उनकी आर्थिक मदद करेगा। उन्होने बैंक से वी0आर0एस0 लेने की योजना बनायी और आवेदन पत्र भी ले आयी।
दीपावली का पर्व नजदीक आता जा रहा था। सरिता देवी की समधन ने ष्फोन पर सूचना दी कि राशि और मनीष (मन्नू) त्योहार मनाने बनारस पहुंच रहे है। एक पल को सरिता देवी को ख्याल आया कि यह सूचना बेटा, बहू ने उनको क्यों नही दी। उन्होने अपने को समझा लिया और सोचा कि बच्चे शायद कार्य में अधिक व्यस्त हैं। उन लोगों के आने वाले दिन सरिता देवी सुबह से ही एअरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो गयी। किचन में मन्नू-राशि की पसन्द के तरह-तरह के व्यंजन बनाए थे। प्लेन दोपहर 2.00 बजे एअरपोर्ट पर लैण्ड करने वाली थी पर सरिता देवी उत्सुकता और प्रसन्नता से 1.00 बजे ही एअरपोर्ट पहुंच गयी और निकास द्वार के सामने इन्तजार करने लगी। अचानक उन्होने राशि के छोटे भाई राहुल को वहीं अपनी गाड़ी पार्क करते देखा। जैसे ही प्लेन के आगमन की सूचना हुई उनकी आंखे निकासी द्वार पर ही टिक गयी। कुछ दूर से बेटा, बहू आते दिखे सरिता देवी खुशी मिश्रित आँसुओं को समेटे बच्चों को गले लगाने को आतुर थी। बेटा बहू दोनो बाहर निकले, माँ को प्रणाम किया और साले की टोयटा गाड़ी की ओर बढ़ गये। सरिता देवी कुछ कहती इसके पहले ही बहू ने बताया कि वह लोग मायके जा रहे हैं। सरिता देवी अवाक सी अपनी टैक्सी के पास खड़ी होकर देखती रहीं कि शायद मन्नू पलट कर कुछ बोले। पर तब तक दोनो राहुल की कार में बैठ चुके थे। सरिता देवी टैक्सी में पीछे की सीट पर निढाल सी बैठ गयी और ड्राइवर को घर की ओर चलने को बोल दिया। न वो रो पा रही थी और न ही कुछ बोल पा रही थीं। घर पहुँचकर ड्राइवर को 500-500 सौ के दो नोट पकड़ाए और जब ड्राइवर ने बाकी के पैसे लौटाने चाहे तो उन्होने उसे मना कर दिया और बोलीं इन पैसों से तुम कुछ खा लेना।
अपने आँसुओ को नियंत्रित करते हुए वे अपने कमरे मे पहुँची। उन्हे इन्तजार था कि उनका मन्नू उन्हे फोन करेगा और रात्रि तक घर जरूर आएगा। इन्तजार करते-करते रात्रि के ग्यारह बज गये। सरिता देवी उठी अपने टेविल पर रखे टण्त्ण्ैण् हेतु लिखे आवेदन पत्र को फाड़ा और रद्दी की टोकरी में डाल दिया।
आज दीपावली है। चारो तरफ पटाखों का शोर हो रहा है। पूजा का समय निकला जा रहा था, बेटा-बहू के आने की कोई सूचना नही मिलने पर सरिता देवी अपने जजबात पर काबू करते हुए पूजा कक्ष की ओर बढ़ गयी और जाकर श्री गणेश लक्ष्मी की मूर्ति के समक्ष मूर्तिवत बैठ गयीं। अब और इंतजार नहीं।

सुमन चन्दा
लखनऊ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here