काव्य : अपना हिस्सा है पाने का – डॉ.गणेश पोद्दार रांची

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अपना हिस्सा है पाने का

अपने बस अपने होते हैं,
नफरत बीज वही बोते हैं,
अवगत हैं गुणावगुण दोनों
अवगुण बोते, खुश होते हैं।

पराये प्रिय अप्रिय पर अपने,
गिले व शिकवों के क्या कहने,
मैं भी आज कलेक्टर होता
बनाया नहीं अपने, उसने।

कोई कब किसी को बनाता,
व्यक्ति सृष्टि-स्रोत-धर्म निभाता,
बनना तो खुद ही पड़ता है
जो चाहता वही बन पाता।

चलने पर ही साथी मिलते हैं,
श्रम -सरोज अपने खिलते हैं,
काम न आता सदा सहारा
कर्मों के ही फल मिलते हैं।

तेज बदल रही अभी दुनिया,
सोच में पड़ी खुद भी दुनिया,
क्या-क्या और हैं अभी देखने
बेहतर तो हो कभी दुनिया!

समय यही भाग्य जगाने का,
कमर कसने व डट जाने का,
रोक नहीं सकते हैं अपने
अपना हिस्सा है पाने का।

डॉ.गणेश पोद्दार
रांची

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