

आनेवाला पल
ज़ख्म भी आज सहलायेगा एक पल,
है ख़बर, ख़ुशनुमा आयेगा एक पल।
झाँकियों के सहारे क्यूँ जीना हमें,
दौर कोई नया लायेगा एक पल।
आज माना अँधेरा है काला घना,
ज़िंदगी में कभी भायेगा एक पल।
धूल सारे धुलेंगे जो दर्पण न थे,
बादलों सा बरस छायेगा एक पल।
मान लेना कि रब की है चाहत यही,
यूँ गुज़रता गुज़र जायेगा एक पल।
ख़्वाब में रश्मियाँ, तारे दामन भरे,
अब न हमको जला पायेगा एक पल।
मौत की दस्तकों से है धड़कन सनी,
ये सितम और क्या ढायेगा एक पल।
आँख अंगार भर, हैं जो नज़रें गड़ी,
गीत कोई नया गायेगा एक पल।
– रजनीश “स्वच्छंद”
दिल्ली

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
