

पानी से रिश्ते
*कच्ची मिट्टी के घड़ों में भरे पानी से रिश्ते*
*बह जाते है अक्सर रिसते- रिसते ,*
*मरम्मत माँगते है, वक़्त दर वक़्त*
*नही तो बिखर जाते है घिसते- घिसते,*
*फिर एक मलाल सा रह जाता है*
*बादल भी थम जाते है गरज़ते- गरज़ते ,*
*वक़्त रहते, वक़्त दे दिया करो इन्हें*
*ये दूर निकल जाते है सरकते – सरकते,*
*हाथ आता नही फिर जो बीत गया*
*और उम्र बीत जाती है तरसते- तरसते,*
*फिर जब कभी याद आते है बीते लम्हें*
*तो आँखें भीग जाती है हँसते-हँसते,*
*दरख़्त यूँहीं तो फलदार नही बनता*
*कई वार बीत जाते है उसे सींचते-सींचते,*
*रिश्ते हक़ीक़त है, इस फ़रेबी जहाँ में*
*इनके साथ कट जाएगा सफ़र आहिस्ते- आहिस्ते.*
– शुभम जैन पराग
उदयपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
