काव्य : पानी से रिश्ते – शुभम जैन पराग उदयपुर

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पानी से रिश्ते

*कच्ची मिट्टी के घड़ों में भरे पानी से रिश्ते*
*बह जाते है अक्सर रिसते- रिसते ,*

*मरम्मत माँगते है, वक़्त दर वक़्त*
*नही तो बिखर जाते है घिसते- घिसते,*

*फिर एक मलाल सा रह जाता है*
*बादल भी थम जाते है गरज़ते- गरज़ते ,*

*वक़्त रहते, वक़्त दे दिया करो इन्हें*
*ये दूर निकल जाते है सरकते – सरकते,*

*हाथ आता नही फिर जो बीत गया*
*और उम्र बीत जाती है तरसते- तरसते,*

*फिर जब कभी याद आते है बीते लम्हें*
*तो आँखें भीग जाती है हँसते-हँसते,*

*दरख़्त यूँहीं तो फलदार नही बनता*
*कई वार बीत जाते है उसे सींचते-सींचते,*

*रिश्ते हक़ीक़त है, इस फ़रेबी जहाँ में*
*इनके साथ कट जाएगा सफ़र आहिस्ते- आहिस्ते.*

शुभम जैन पराग
उदयपुर

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