

बाकी है
यूँ तो अपने घर से लेकर चले थे, हम अरमान तो बहुत,
उनमें से कुछ हो गए मुकम्मल, कुछ अब भी बाकी हैं,
सुन तो बहुत रखे थे हमने, तेरे शहर के कई किस्से,
बाकी सब तो देख लिया, बस इक तेरा दीदार बाकी है,
बिन माँगे ही ख़ुदा ने, यूँ तो दिया है मुझको बेहिसाब,
ये मिलक़ियत तो ठीक है, बस इक तेरा मिलना बाकी है,
इस जहान से हँसकर “देव”, मैं हो जाऊँगा रुख़सत,
रुख़सत होने से पहले, उसे जी भर कर देखना बाकी है,
– देवेंद्र जेठवानी
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
