

हमारा भारत हमारा संविधान
lजय हिंद साथियों,
आज हमारा प्यार पर्व स्वतंत्रता दिवस है और सभी आज इतने उत्साह में हैं कि हम एक पल तक का इंतजार नही कर सकते तो क्यों न हम आज रचनाओं के माध्यम से अपनी बात कह लें ।
मित्रों ,यह आजादी ,यह गणतंत्र ,यह संविधान आज हमें जितना रोमांचित और उत्साहित कर रहा है वह इतनी सहजता से हमें नही प्राप्त हुआ है , यह बात आप सभी को ज्ञात है।
सदियों की दासता के बाद अथक संघर्ष से हमने इस आजादी को पाया है।
हम पहले थोड़ा आदिकाल में जाते हैं। हमारा देश समस्त आर्यावर्त को अपने में समेटे एक दृढ़ सूत्र में बंधा था ,पर उन दिनों भी देश की समृद्धता और सुरुपता से आकृष्ट हो समय समय पर आक्रमण होते रहे हैं पर हमारे देश की भूमि सदैव से ही वीरों की जननी रही है और यहाँ भगीरथी और सगर जैसे राजा हुए हैं जो जन कल्याण की खातिर पवित्र गंगा को जमीन पर उतार लाये तो फिर शत्रुओं की क्या मजाल कि वे हमारे देश पर अपनी कुदृष्टि भी डाल सकें ।
यहाँ चक्रवर्ती सम्राट होने का तात्पर्य यही होता था कि एक चक्र के सदृश्य सम्पूर्ण देश पर अपनी विजय पताका फहरा देना पर इन सभी में जो अहम बात निहित होती थी ,वो यह होती थी कि हम सभी आपस में एकजुट होते थे और दूसरे सामर्थ्यवान की सामर्थ्य को स्वीकार भी करते थे और यही एकत्व की भावना एक सुंदर संगठन बन जाती थी कि फिर उसके आगे कोई ठहर भी नही पाता था।
पर हमारी ही कतिपय भूलों ने हमारे संगठन को ध्वस्त कर दिया और हमारी इसी कमजोरी का फायदा अन्य दूसरे देशों ने उठाया और फिर भारत को अपने चंगुल में जकड़ लिया ।
पहले मुगलों ने और फिर अंग्रेजों ने इस भारत भू और यहाँ के वासियों का जो शोषण किया वह बड़ा ही शर्मनाक था और अंग्रेजों ने तो फिर भी भारत को कुछ दिया है लेकिन मुगलों ने तो केवल हनन ही किया है और इस दासता को झेलते हमें लगभग 200 वर्ष व्यतीत हो चुके थे और हमारे रणबाँकुरे चाहे वो तत्त्या टोपे थे या दुर्गावती या रानी लक्ष्मीबाई या फिर चन्द्र शेखर आजाद,भगत सिंह ,या विवेकानन्द , या सुभाषचन्द्र या शास्त्री जी या गाँधी जी आदि आदि।
और इस प्रकार सभी के अथक प्रयासों से15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हो गया और हमने इस आजाद धरा में सांस लीं पर अभी यह कार्य पूर्ण नहीं हुआ था ।अभी तो अपना एक संविधान बनना बहुत ही आवश्यक था क्योंकि बिना संविधान के किसी भी कार्य को आधिकारिक रूप से नही किया जा सकता था ,तब संविधान का विचार1935 में सभी के मन में आया और इस विचार के तहत *भारतीय सरकार अधिनियम बन* गया था पर लोग उससे खुश नहीं थे कारण कि *गवर्नमेंट ऑफ इंडिया* एक्ट के तहत बने इस संविधान में समस्त अधिकार गवर्नर के पास थे और पंडित नेहरू जी तो इसे बिना इंजन की मशीन कहते थे ,और तब 1945 को डॉक्टर तेज बहादुर जी ने संविधान का एक प्रारूप तैय्यार किया पर आगे जाकर यह भी असफल हो गया।कारण जिनके दम पर यह फैसला होना था वो बिर्टिश के विन्सटन चर्चिल चुनाव हार गये और कुछ द्वितीय विश्व युद्ध के कारण और भारत में पैदा हो रहे आंदोलनों के कारण यह विचार आगे नहीं बढ़ पाया और अब नए अंग्रेज प्रधान मंत्री ने भारत का बंटवारा कर दिया जिससे कॉंग्रेस और मुस्लिम लीग दोनो ही पार्टी अलग हो गए पर भारतीयों के दबाव के चलते अंग्रेज सरकार ने 1946 में तीन मंत्रियों को भारत भेजा जिसे *कैबिनेट मिशन कहा* गया।
पर इस मिशन से भी कोई हल नहीं निकला।
इस मिशन में मौलाना आजाद, सरदार पटेल, चाचा नेहरू,
जियाकत खान अब्दुल गफ्फार, लियाकत अली खां, इस्माइल जिन्ना और सरदार नबाब मोहम्मद हमीदुल्ला शामिल थे।
यह बैठक शिमला में हुई और भारत विभाजन के साथ यह भी तय हुआ कि अब अंग्रेज हमें ,हमारा भारत हमें सौंप देंगे और फिर यहीँ से संविधान बनने की शुरुआत हुई और अब संविधान लिखने की आवश्यकता आ पड़ी।
तब पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को सच्चिदानन्द जी की अगुवाई में हुई और जिसके अध्यक्ष डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद थे और फिर तैयार प्रारूप को 13 दिसम्बर को पंडित नेहरू ने सभी राजाओं के सामने पढा क्योंकि उस समय तक हमारे देश में राजतंत्र था और तब सभी राजाओं को यह आदेश हुआ कि सभी की राजनैतिक सत्ता समाप्त कर एक सम्प्रभुत्व साम्राज्य की स्थापना करनी है पर राजा ,महाराजा इतनी आसानी से कहाँ मानने वाले थे और तब 1947 को यह विचार डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी के समझाने से सर्वसम्मति से पास हो गया और सभी राजाओं ने सहर्ष कांग्रेस को स्वीकार कर लिया और फिर एक तिरंगे की कल्पना 14 जुलाई को 1947 हुई जिसका सभी ने सम्मान किया और इस प्रकार अंततः 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और पुनः एक नया ढाँचा बनाया गया जिसमें 389 सदस्य थे और प्रमुखतः भीमराव अंबेडकर जी,संजय सेठ
नेहरू जी,डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद,चक्रवर्ती राज गोपालाचारी
कन्हैया लाल और गणेश वासुदेव आदि और भी लोग थे और महिला सदस्यों में सरोजनी नायडू ,हंसा मेहता,दुर्गा बाई देश मुख
अमृता कोर एवम विजय लक्ष्मी पंडित जी प्रमुख थे और भीमराव अंबेडकर जी को अध्यक्ष बनाया गया।
अब संविधान को मूर्त रूप देने में बहुत सारी बातें शामिल है जिनका यहाँ उल्लेख सम्भव नही है और अंततः 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन में 284 सदस्यों के हस्ताक्षर से 24 नवम्बर 19489 को हमारा संविधान बन गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
अब फिर एक बात आती है कि 26 जनवरी के ही दिन क्यों चुना गया क्योंकि 26 तारीख का यह दिवस 1950 से 20 वर्ष पूर्व यानी हमारे ऐतिहासिक दिवस 26 जनवरी 1923 को चाचा नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कर दी थी और हमारे संविधान में 448 अनुच्छेद,1संविधान उद्देशिका,12 अनुसूचित जातियां एवम 5
अनुलग्न शामिल हैं और इसमें अंतिम संशोधन G S T को लेकर किया गया था और यह विश्व में सबसे बड़ा संविधान है ।
वैसे तो यह बिर्टिश संविधान से प्रभावित है पर इसके लचीले पन के कारण इसमे समय समय पर हुए संशोधन ने इसे एक अलग ही आकार दिया है और इसकी गुणवत्ता किइसकी मूल विचार धारा के अंतर्गत
1 कोई भी जो भारत का नागरिक है वह इस देश का प्रतिनिधित्व कर सकता है ।
2 कोई भी किसी भी धर्म का अनुयायी हो अपने धर्म के नीति नियमों के आधार पर किसी का हनन किये बिना अपने धार्मिक कृत्य सम्पादित कर सकता है ।
3 अब सरकार का सीधा सम्बन्ध जनता से है ।जनता का, जनता के लिए , और जनता के ही द्वारा किया गया शासन
4 संविधान में कितनी भी फेर बदल हो पर उसके मूल ढांचे में कोई परिवर्तन न आ पाये इसके अलावा और बहुत सारी बाते हैं पर समयाभाव के कारण उनका वर्णन सम्भव नही है ।
बस यह मुख्य बात थी हमारी गणतंत्र की कि , यह जनता का शासन था और कोई भी भारत का नागरिक अपनी क्षमता से उच्च पद में आसीन हो सकता था ।
क्योंकि एक बात और हे जो मैं कहना चाहूँगी कि हमें बाहर वालों से ज्यादा अपनों से भय था और यहाँ की राजकीय प्रथा थी कि राजा का पुत्र ही राजा बनेगा ,वह योग्यता के आधार पर नहीं तय थी ।तय तो योग्यता के ही आधार पर थी पर कतिपय राजाओं की मानसिकता के कारण और उनके मंत्री आदि कूटनीति से राज्य हड़प लेते थे ।
आप महाभारत काल में ही देखें कि जो राज्य पांडवों को मिलना था वो ज्येष्ठता के आधार पर नेत्र विहीन धृतराष्ट्र को मिल गया और यही बात सारे अनर्थ का कारण बनी ।
और ऐसा ही मौर्य काल में भी हुआ जब समुद्रगुप्त का कायर बेटा रामगुप्त गद्दी पर ज्येष्ठता के
आधार पर गद्दी पर बैठा पर ऐसा भी नहीं था ।अपने देश में गणतंत्र की कल्पना राजा भरत ने कई हजार वर्ष पहले ही कर दी थी ।राजा भरत जिनके नाम पर अपने देश का नाम भारत
पड़ा है ,सबसे पहले गणतंत्र की स्थापना उन्होंने अपने 100 पुत्र अयोग्य होने के कारण, उन्होंने जनता में से ही किसी को योग्यता के आधार पर अपना राजपद सौंपा था।
अब मैं अंत में अपने गणतंत्र और अपने संविधान को दुनिया के समक्ष लाने के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज की अवश्यकता पड़ी जो हमारे विचारों और भावों को सभी के समक्ष प्रस्तुत कर सके तब सरकार और सेना के तीनों अंगों
यथा
सरकार के अंग
कार्यपालिका
व्यवस्थापिका और
न्यायपालिका
और सेना के अंग
जलसेना
थलसेना व
नभसेना
तथा
सरकार की त्रेय रूप कल्पना
एक सरकार
जनता की
जनता के लिए
और
जनता के द्वारा जैसी
त्रि भावों को व्यक्त करता हमारा तिरँगा जो कि
त्रेय प्लस अंगा
यानी सरकार के प्रत्येक त्रिरुप का प्रतिनिधत्व करता है और जिसके बारे में मैं कल विस्तार से बात कर चुकी हूं और आज बस यही बताऊँगी कि इस तिरंगे को बनाने का अधिकार केवल हुबली में गए और अभी तक का सबसे बड़ा झंडा 23 जनवरी 2016 को झारखंड की राजधानी राँची में फहराया गया है जिसकी ऊँचाई493 फ़ीट है और चौड़ाई 99 बाई 66 फ़ीट है।
इसे हम सूर्योदय से सूर्यास्त के पूर्व तक ही फहरा सकते हैं और जिसका सम्मान हम सभी भारतवासियों का मुख्य दायित्व है
और अंत में
इसकी तो है छबि मतवाली,
इसकी शान निराली आली।
यह भारत का अलबेल सुत
सेना इसकी करे रखवाली।।
–ममता श्रवण अग्रवाल
साहित्यकार
सतना

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
