काव्य : स्वतंत्रता – राजेश तिवारी ‘मक्खन’ झांसी

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स्वतंत्रता

थे सपूत जो भारत माँ के , बलि बेदी अपनाई थी ।
माँ की लाज बचाई थी ।।

जिसका मंगल पाण्डे नाम , कर्म धर्म रक्षा का काम , हो गयो भारत भर में नाम ।
गोरन को गरराटो देखो , बंदूक दई चलाई थी ।
माँ की लाज बचाई थी ।………………..१

झांसी की रानी मरदानी , वीरांगना थी बनी भवानी , महिमा सकल विश्व ने जानी ।
अंग्रेज़ों के आगे आ गयी , मुंह में रास दबाई थी ।
माँ की लाज बचाई थी ।…………………२

राणा और शिवा की शान , दुष्ट विधर्मी गये थे मान , करते देश भक्त गुण गान ।
भारत माँ के लाल लाड़ले , घास की रोटी खाई थी।
माँ की लाज बचाई थी ।…………………३

सुभाष भगत आजाद अनेक , अपने बदल बदल के भेक , मारे थे अंग्रेज अनेक ।
आजादी की आग लगा दी , बुझती नही बुझाई थी ।
माँ की लाज बचाई थी ।…………………४

कर्णधार सुन लो मेरे भाई , किस्ती खींच किनारे लाई , उन्नति शिखर तक दो पहुंचाई ।
राजेश रात दिना एक कींन्हा , मेहनत ही अपनाई थी ।
माँ की लाज बचाई थी ।…………………..५

राजेश तिवारी ‘मक्खन’
झांसी उ प्र

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