लघुकथा : झंडा वंदन – आर के तिवारी सागर

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लघुकथा
स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर

झंडा वंदन

नजीर ओ नजीर! चलना नहीं है क्या?
देखो तो सूरज कितना *चढ़* गया है और जाना भी दूर है।
चल जल्दी चल। वहाँ गोवर्धन काका की दुकान से साइकिल में हवा भी भरना है। मैं नसीर के दरवाजे से उसे आवाज़ दे रहा था जिसे सुनकर उसकी अम्मी बाहर आई और आते ही बोली तूं थोड़ा इधर बैठ जा नसीर अपनी पेन्ट पर *इस्तरी* कर रहा है, रात को धोया था। अब क्या करें बेटा! उसकी स्कूल की एक ही तो ड्रेस है कल उसने धोने को डाल दिया था। मुझसे बोला था मम्मी कल किशन के साथ सुबह 15 अगस्त पर झंडा वंदन के लिए स्कूल जाना है इसको धो देना मैं सुबह इस्तरी कर लूंगा। वह मुझसे बोली तूं आ इधर बैठ जा वह इस्तरी कर ले फिर चले जाना। मैं उसकी अम्मी की बात सुनकर वहीं आंगन में पड़ी खटिया पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में नसीर घर से बाहर आया मैंने देखा वह पैंट शर्ट में बहुत सुन्दर लग रहा था।
मेरा परिवार वर्षो से गांव के मंदिर का पुरोहित का कार्य करता आ रहा है पहले मेरे दादा,उससे पहले परदादा अब मेरे पिता जी पूजा करते हैं।
गांव में चार-पांच घर ठाकुरों के दो घर ब्राह्मणों के आठ-दस घर अन्य जाति के थे और एक घर नसीर का था जो मुस्लिम समुदाय से था। मेरे पिता कहते थे नजीर का परिवार भी कई पीढ़ियों से इस गांव में रह रहा है।
वर्षो से गांव के हम सभी जातियों के लोग हिंदू मुस्लिम दोनों समुदाय के तीज-त्यौहार मिलजुल कर मनाते आ रहे हैं। नसीर के अब्बा अब्दुल रशीद एक छोटी सी रुई धुनकने वाली मशीन लगाये हुये हैं जिससे गांव के और आसपास के गांवों के गर्म कपड़ों में रुई नसीर के अब्बा की ही दुकान से भरी जाती है। उसी के साथ एक छोटी सी दुकान भी किए हुए हैं जिसमें महिलाओं को चूड़ी और श्रृंगार वगैरह का सामान और घर गृहस्थी में काम आने वाले छोटे-मोटे सामान भी रखे हुए हैं।
मैं और नसीर जैसे ही चलने लगे तो नसीर की अम्मा मुझसे बोली किशन बेटा नसीर का ख्याल रखना और जल्दी आना । तब मैंने उनसे कहा अम्मी चिंता न करो नसीर और किशन दो जिस्म पर एक जान हैं।
असल में हमेशा ही 15 अगस्त और 26 जनवरी के अवसरों पर कुछ अलगाववादी ताकतें हमेशा से ही हिंदू मुस्लिम में बैर पैदा करने और दंगे फैलाने का काम करती आ रहीं हैं। जिसका डर लोगों में रहता है। आखिर अम्मी नसीर की मां है चिंता तो होती है। पर आज हम सब हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई बनकर इस भारत देश में रह रहे हैं और स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को बड़ी धूमधाम से मनाते आ रहे हैं। मैंने अपनी साइकिल गांव के बाहर गोवर्धन काका की दुकान के सामने खड़ी की। नसीर ने काका के पंप से साइकिल में हवा भरी और हम दोनों साइकिल पर बैठकर पास के ही गांव की स्कूल में झंडा वंदन के लिए निकल पड़े।

आर के तिवारी
सागर

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