काव्य : जग मन जग, जय है – डॉ ब्रजभूषण मिश्र मुंबई प्रवास

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जग मन जग, जय है

जग मन, जग,जय है
देश में ,नव सूर्य, उदय है
तन मन , तव,देश मग्न कर
कर्म कर,निज,धर्म कर
मन मंत्र, समभाव तेरा रख
भारत विशाल,निर्भय है,

जग मन ,जग,जय है
राष्ट्र में,प्रति पथ पर, विजय है
उन्नति,प्रगति,सम्मान,शक्ति है
अवसर समान,स्वतंत्र भक्ति है
मन मंत्र,भारत अखंड ,रख
भारत भाल,हिमालय है

जग मन जग, जय है
नूतन, विकास का, अभ्युदय है
बनते मार्ग व गृह, हैं ,विद्युत वअन्न वृद्धि
हैं स्वास्थ्य उन्नत,स्वच्छता, समृद्धि
मन मंत्र, स्व रोजगार रख
भारत की जय और विजय है

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
मुंबई प्रवास

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