समझें वाणी का महत्व – ममता श्रवण अग्रवाल,सतना

समझें वाणी का महत्व

वाणी का अपनत्व वो कार्य करे,
जो नफरत या क्रोध न कर पाए।
कठोर प्रहार से जो खुले न ताला
वो नन्ही सी चाभी से खुल जाए।।

आज इस विषय पर बात करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है क्योंकि यह एक ऐसा विषय हैं कि जितना भी लिखा जाए वो कम ही होगा क्योंकि आदि काल से लेकर अभी तक कितने ऐसे उद्धरण हमारे समक्ष हैं जब जब वाणी की ताकत ने अपना प्रभाव दिखाया है। यह ताकत किसी धार दार तलवार से भी ज्यादा प्रभावी होती है ।एक तलवार युद्ध को समाप्त कर रिश्तों को भी खत्म कर देती है लेकिन वाणी की मृदुलता युद्ध को भी समाप्त करती है और रिश्तों को भी जोड़े रखती है क्योंकि यह अंतस्थल तक जाकर अपना प्रभाव दिखाती है और यह भी दो तरह से कार्य करती है
मृदूता पूर्ण वाणी
और
कटुता पूर्ण वाणी
जहां मृदुता पूर्ण वाणी लोगों के दिलों को जोड़ती है वहीं, वाणी की कटुता आपसी संबंधों को भी कटु बना देती है क्योंकि इसकी कटुता तलवार से भी तीक्ष्ण होती है पर हम इस वाणी की बात नही कर रहे ..
हम आज बात कर रहे हैं उस वाणी की जो मृदु होने के साथ अहंकार रहित और सरस भी हो और सत्य के समीप भी हो।
इस प्रकार शुद्ध वाणी में

सत्य भी होता है
सरसता भी होती है
निश्छलता भी होती है
और
अभिमान हीनता भी होती है..
पहला बिंदु
कभी कभी हम देखते हैं कि अति मृदुता के लोभ में हम अपनों की कमियां भी छुपा जाते हैं जो नहीं होना चाहिए ।
हमें मृदु समभाषण तो करना है पर यथार्थ को छोड़कर नहीं।
दूसरा बिंदु
इसी में यह आता है कि वाणी में सरसता भी हो कर्कशता नहीं क्योंकि किसी को हमारा सामीप्य हमारी वाणी से ही प्रभावित करता है हमारे अन्य गुण बाद में।
सरसता से आशय है रस यानी आनंद यानी जिसके साथ से हनारी आत्मा में आनंद की लहर आ जाए वही वाणी सरस कहलाती है।
इस प्रकार वाणी में सरसता का होना अति आवश्यक है।तीसरी बिंदु
अब बात आती है कि वाणी में अभिमान का पुट लेश मात्र भी न हो क्योंकि अभिमान युक्त वाणी स्वादिष्ट भोजन में कंकण के समान है जैसे एक छोटा सा भी कंकण पूरे भोजन को स्वादहीन कर देता है ठीक उसी प्रकार अभिमान युक्त वाणी कभी भी किसी के हृदय को नहीं स्पर्श कर सकती।
चौथा बिंदु
है निश्छलता
जो वाणी छल कपट या दिखावे से परे होती है वही वाणी सही मायनों में अपना प्रभाव बना पाती है।
इस प्रकार ऐसी निर्मल, निश्छल,अभिमान रहित वाणी किसी को भी अपना बना सकती है जैसे कि हमारे ऋषि, मुनि,संतो महात्माओं और विचारकों की थी और जिसके बल पर उन्होंने अंगुलीमान डाकू को साधु बना दिया,प्रभु राम ने फरशुराम जैसे क्रोधी ऋषि को शांत किया जैसे संत ज्ञानेश्वर ने जनमानस को ज्ञान दिया और भैंस के मुख से श्लोक उच्चारित करवा दिए आदि ऐसे अनेक उदाहरण है जो बताते हैं कि वाणी की मृदुता बड़ी से बड़ी जीत दिला सकती है पर अंत में एक बात और कहूंगी कि कभी कभी इस मृदु वाणी पर कठोरता का आवरण भी डालना पड़ता है पर परिस्थितियों के अनुरूप पर फिर भी कोशिश करें कि हमारे स्वभाव और हमारी वाणी किसी को पीड़ा न दे क्योंकि जैसे एक बड़े से बड़ा ताला पत्थर के प्रहार से नहीं खुल पाता पर वही ताला एक नन्ही चाभी से खुल जाता है वैसे ही बड़े से बड़ा क्रोधी भी हमारी वाणी के प्रभाव से शांत हो सकता है।

ममता श्रवण अग्रवाल
साहित्यकार
सतना

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