

लघु कथा
कानों सुनी
दो बहनें ,दोनों ही अलग अलग बाप से पैदा हुई , माँ एक ही है दोनों बहनों की । मगर नसीब तो देखिए कि- बाप दोनों आज भी जिंदा हैं , और फिर भी माँ ने ही दोनों बच्चियों को पाला है । चौका चूल्हा करके बेटियाँ पढ़ा रही हैं ।आज तक बेटियों को मालूम नहीं था कि हम दोनों बहनों के पिता अलग अलग हैं । यह भेद बच्चियों पर माँ के मायके की साइड़ की महिलाओं ने ही खोल दिया ।वो चाहे मामी मौसी नानी कोई भी हो । नतीजा खतरनाक साबित हुआ । कानों में गया जहर आपसी दूरियों में सिमटता जा रहा है । दोनों बहनों के बीच का आपसी विश्वास खो गया। तीनों माँ बेटी एक दूसरे से इनसिक्योर फील करने लगी । शायद यही होता है अधिक ज्ञान का नतीजा या नेगेटिव सोच का दिमाग में चलना। जवान बेटियों को समझाना नामुमकिन हो रहा है , माँ ने सब कुछ बेटियों पर छोड़ दिया ।जो डिसीजन लेना हो ले लो । तुम आजाद हो।
अब पहले सी बात होना नामुमकिन होगा। मन तो तीनों के ही बुझा दिये । यह समाज है खुशी खुशी जीने नहीं देता।लोगों को मजा आता हैं चैन से रहने वालों की खुशियों में आग लगाकर
वो कहावत यहाँ बहुत सटीक बैठती है कि “सीख तो पत्थर को भी फोड़ देती है”। अब वही इस फैमिली के साथ हुआ प्रतीत होने लगा है ।
– सुनीता मलिक सोलंकी
मुजफ्फरनगर उप्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

यह लघुकथा कम, एक घटना मात्र है।