लघुकथा : मुक्ति – कर्मेश सिन्हा ‘तनहा’ दिल्ली

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लघुकथा

मुक्ति

मेरी उससे मुलाक़ात एक व्हाट्सएप ग्रुप में हुई थी। बेहद ख़ुश मिज़ाज तबीयत थी उसकी। नाम था गीता। उससे मेरी बात हमेशा व्हाट्सएप पर ही होती थी। अपने बारे में उसने बहुत कुछ बताया। एक एक करके पहले पिता फिर माॅं दोनों का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। कुछ समय पहले उसके छोटे भाई की भी एक दुर्घटना में अचानक मृत्यु हो गई थी। अब वो,उसकी विधवा भाभी तथा एक भतीजे के साथ रहती थी। भतीजा बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। उन दोनों की जिम्मेदारियों का बोझ उठाते हुए वो ज़िन्दगी की राहों पर अकेले चली जा रही थी।

गीता एक स्कूल में टीचर थी। छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाती थी। शाम को घर पर बच्चों को ट्यूशन देती थी। उसी से इन तीन प्राणियों का गुज़ारा चल जाता था। घर अपना था। दो वक़्त की रोटी का इंतजाम स्कूल की तनख्वाह और ट्यूशन की कमाई से चल जाता था। ज़िन्दगी गुज़र रही थी।

मित्र होने के नाते जब मुझे पता चला कि उसका भतीजा बारहवीं कक्षा में पढ़ता है तो मुझे कुछ फ़िक्र सी होने लगी। आज वो लड़का तकरीबन अठारह साल का होगा। अगले साल कालेज जाएगा। फिर नौकरी करने लगेगा। कुछ पांच छः सालों में दुनिया दारी की भाषा में सैटल हो जाएगा। फिर उसकी शादी हो जाएगी। मैं सोच में पड़ जाता था। आज का ज़माना ऐसा है कि कोई शादी के बाद अपने माॅं बाप को भी साथ नहीं रखना चाहता है। क्या ये लड़का अपनी माॅं को साथ रखेगा? पर मेरी वास्तविक चिंता यह नहीं थी। मुझे फ़िक्र थी अपनी मित्र गीता की। क्या वो लड़का अपनी बुआ को साथ रखेगा?

मैंने कभी पूछा नहीं पर मेरा अनुमान था कि गीता की उम्र चालीस पैंतालीस करीब की होगी। क्या होगा उसके साथ आठ दस साल बाद जब उसके भतीजे की शादी हो जाएगी? पर मित्रता इतने उच्च स्तर पर नहीं थी कि उससे उसकी निजी ज़िंदगी के बारे में सवाल पूछ सकूं, जैसे शादी क्यों नहीं की। या उसे कह सकूं किसी का हाथ थाम ले। मैं आज के बारे में नहीं सोचता था वरन् आगे के बारे में सोचता था। कल जब उसे उसका भतीजा छोड़ देगा तब उसे किसी सहारे की ज़रूरत होगी। पर संकोचवश या मित्रता की सीमाओं को समझते हुए मैं कभी कुछ कह नहीं पाया।

फिर अचानक से गीता के व्हाट्सएप पर मैसेज आने बंद हो गये। एकदम से पता नहीं चला। दो चार दिनों के बाद देखा उसका कोई गुड मॉर्निंग का मैसेज नहीं आ रहा। और यह भी देखा कि मेरे भेजे हुए मैसेज डिलीवर तो हुए पर ओपन नहीं हुए। व्हाट्सएप ग्रुप में भी देखा। वहाॅं भी गीता ने कोई मैसेज नहीं भेजा था। एक सदस्य का वहाॅं से नंबर लेकर उनसे पूछा। पता चला उनको भी गीता की कोई ख़बर नहीं थी। अब मैंने गीता के नंबर पर फोन किया। पर किसी ने काल रिसीव नहीं की। मैंने सोचा हो सकता है कुछ दिनों के लिए बाहर गई होगी। और जब मेरे मैसेज और मिस काल देखेगी तो ख़ुद ही फोन करेगी। मगर चिंता होने लगी। एक फ़िक्र तो पहले ही थी, यदि भतीजा साथ रखने को तैयार नहीं हुआ तो भविष्य में क्या होगा?? पर अब साथ साथ वर्तमान की भी चिंता होने लगी। कहाॅं है,कैसी है, आखिर हुआ क्या? उसके मित्रों को भी कुछ पता नहीं था।

इसी उधेड़बुन में एक हफ्ता और फिर महीना दर महीना गुज़र गया। कहीं से कुछ भी पता नहीं चल रहा था। फिर अचानक करीब छः महीने बाद गीता का एक मैसेज आया। गीता का मैसेज नहीं कहना चाहिए। गीता के नंबर से व्हाट्सएप पर एक मैसेज आया। ” मैं राहुल, गीता मिश्रा जी का भतीजा हूॅं। आप को अत्यंत दु:ख के साथ सूचित करता हूॅं ,मेरी बुआ मुझे और मेरी माॅं को कल रोता बिलखता छोड़ कर इस दुनिया से चली गई।” यह मैसेज राहुल ने सभी जानकारों को फारवर्ड किया था। साथ में बारह सेकंड का वीडियो भी था जिसमें गीता की ज़िन्दगी के आखिरी लम्हे क़ैद थे।

मुझे इसके बाद एक और मैसेज आया। राहुल ने लिखा,”बुआ ख़ास तौर पर कह कर गयी थी कि आपको ज़रूर बता दूॅं , क्योंकि इस दुनिया में आप ही उनकी फ़िक्र करते थे।” और इस तरह मेरी मित्र को अपनी ज़िन्दगी से और मुझे मेरी चिंता से मुक्ति मिल गई।

कर्मेश सिन्हा ‘तनहा’
दिल्ली

1 COMMENT

  1. कर्मेश जी की कहानी मुक्ति पढ़ी। बड़ा अच्छा लगा किसी का इस तरह फिक्र करना। ऐसा होना भी चाहिए। यदि रैज किसी का मिसेज आता हो और अचानक कई दिनों के लिए बंद हो जाए तो जाहिर सी बात है कि कुछ न कुछ अघटित घटित हुआ है। कहानी का भाव,शब्द विन्यास कथानक और कथ्य बहुत सुदृढ़ है और प्रेरक संदेश भी कि भले ही आभासी मित्रता हो लेकिन यदि बहुत दिन मैसेज न आए तो क्या और कैसे हुआ, यह जानने की कोशिश करनी चाहिए। आजकल तो यह हाल है कि लोग शोक संदेश मिलने पर संक्षेप में RIP कहकर औपचारिकता निभा देते हैं।

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