लघुकथा : काश !- सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा, उ.प्र.

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लघुकथा

काश!

        जुम्मन अपना ई रिक्शा लेकर चौराहे की ओर जा रहा था।सड़क पर भारी भीड़ देख उसने ई रिक्शा किनारे रोका और भीड़ की ओर भागा। भीड़ को चीरते हुए कैसे भी जब वो आगे बढ़ सका, तो वहाँ का दृष्य देख हतप्रभ हो गया।
         उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ, कि लोग घायल पड़े युवक की फोटो खींच रहे थे, वीडियो बना रहे थे साथ उसकी की मदद नसीहतें दे रहे, मरने की आशंका व्यक्त कर रहे थे।मगर एक भी व्यक्ति आगे नहीं आ रहा था। जुम्मन ने लोगों से सहायता की गुजारिश की, मगर एक भी व्यक्ति आगे नहीं आ रहा था।
      लाचार हो उसने अकेले जैसे तैसे अपने ई रिक्शा में डाल अस्पताल तक पहुंच गया। इमरजेंसी में पहुंचा।
लेकिन जब डाक्टर ने घायल को मृत  घोषित कर दिया, तो वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह गया।
     वह सोचने लगा कि काश! उस भीड़ का एक भी शख्स ही अगर संवेदनशील होता तो शायद घायल जीवित होता।
    फिलहाल उसके पास इस काश!काश!!काश!!! का कोई जवाब नहीं था।
                            
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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