लघु कथा : ईर्ष्या या अवसाद – डा बीना सिंह “रागी ” भिलाई

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लघु कथा

ईर्ष्या या अवसाद

निधि पति जी को नाश्ता करा कर दैनिक जीवन के सुबह के काम को निपटा कर थोड़ी आराम के लिए सोफा पर बैठी और मोबाइल देखने लगी ज्यों ही उसकी नजर एक व्हाट्सएप ग्रुप में अपनी पोस्ट पर अनुचित अनर्गल प्रतिक्रिया देखकर गंभीर हुई यह प्रतिक्रिया किसका है तो देखा कि रुचिका मैडम ने दिया है तो निधि ने अनमने ढंग से लिया क्योंकि रुचिका मैडम किसी के भी पोस्ट पर बिना देर किए अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करती कभी-कभी तो हद हो जाती थी सामने वाले को नीचे दिखाने की कोशिश में किसी अपने पुराने आलोचक के भी साथ हो लेती थी मैडम को मेल मिलाप मर्यादित व्यवहार से ज्यादा कुटिलता कुटिल चाले चलने में रुचि थी खैर निधि आगे बढ़कर व्हाट्सएप में अच्छे-अच्छे पोस्ट पढ़ने लगी अचानक से नजर दीवाल पर टगी घड़ी पर गई अरे बाप रे 12:00 बज गए डेढ़ 2:00 बजे पति महाशय आ जाएंगे चल उठ निधि किचन में लग स्वादिष्ट भोजन भी तो बनाने हैं क्योंकि पति देव कहते हैं जैसा मन वैसा अन्न ।
मोबाइल टेबल में रखते हुए कंधे को छटकते हुए निधि उठी और किचन के तरफ चली यह सोच कर हमें तो आगे बढ़ना है सही रास्ते पर चलना है रुचिका मैडम के व्यवहार में ईर्ष्या है या अवसाद वह तो वही जाने मुझे क्या लेना देना ।

-डा बीना सिंह “रागी ”
भिलाई

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