

लघुकथा
वीरगाथा
वह मेरा अस्तित्त्व मिटाना चाहता था, पर मिटा न पाया।
वह बहुत झुंझलाया।
इसके लिए उसने क्या-क्या नहीं किया। उसने मेरे हाथ काटने चाहिए, पर काट न पाया।
वह बहुत झल्लाया ।
उसने मेरे पाँव काटने चाहे, पर काट न पाया।
वह बहुत तिलमिलाया।
हर कोशिश में नाकाम होने के बाद उसने आख़िरी चाल चली।
उसमें मुझे जिंदा दफ़ना दिया ।
मुझे जिंदा दफ़नाकर वह बहुत ख़ुश हुआ।
उसे लगा कि मैं साँस घुटने से मर जाऊँगा।
पर मैं जानता था कि मैं अब सुख का साँस ले पाऊँगा। उसे लगा कि वह जीत गया है।
पर मुझे पता था कि वह हार गया है।
क्योंकि वह भूल गया था कि मैं एक बीज हूँ।
–योगराज प्रभाकर,
पटियाला

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
