

समन्वय के बिंदुओं को भारतीय भाषाओं में ढूंढ़ना हो उद्देश्य ~ श्रीधर बालन
अमृतकाल में भारत के साहित्य की गरिमा को विश्व पटल पर पहुंचाना प्रथम कर्त्तव्य ~ युवराज मलिक
रिपोर्ट • कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
भोपाल।
साहित्य अकादमी भारत सरकार द्वारा आयोजित अन्तरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव ‘उन्मेष’ में 6 अगस्त 2023 को रविंद्र भवन भोपाल के नीलांबरी सभागार में सायं 2: 30 से 4: 00 बजे तक ‘ भारतीय भाषाओं में प्रकाशन ‘ विषय पर केन्द्रित विमर्श सत्र आयोजित हुआ। सत्र की अध्यक्षता श्रीधर बालन ने की। वहीं वक्ता के रूप में रमेश कुमार मित्तल, विजय कुमार धूपति, बीना बिस्वास, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के निदेशक कर्नल युवराज मलिक, और प्रणव कुमार ने इस सत्र की वैचारिकी को आगे बढ़ाया।
श्रीधर बालन ने पुस्तक प्रेम , भारतीय भाषाओं के मध्य सम्बंध स्थापित करने और अनुवाद पर बल देते हुए कहा कि — प्रकाशन जगत की अपनी चुनौतियां एवं विशेषताएं हैं। साथ ही लोगों को एक करने के लिए – एकता के सूत्रों व समन्वय के बिंदुओं को भाषा में ढूंढ़ना पड़ेगा। प्रस्तुत करना पड़ेगा। भाषा सभी से सम्वाद करने वाली होनीं चाहिए। वहीं रमेश मित्तल ने भारतीय प्रकाशन जगत की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति व प्रकाशन जगत के अन्तर्सम्बन्धों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा आयोग – त्रिभाषा फार्मूले पर भारतीय भाषाओं में प्रकाशन, पाठ्यक्रम निर्माण के लिए प्रयास कर रही है। अनुवाद हमारी भाषाओं के लिए महत्वपूर्ण है, बच्चों के लिए द्विभाषा में त्रिभाषा भें पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ‘ नेशनल बुक डेटा बेस ‘ का निर्माण करे। बुक एम्पोरियम, पब्लिक एवं मुहल्ला लाईब्रेरी की ओर ध्यान देना चाहिए।
अगली वक्ता के रूप में बीना बिस्वास ने प्रकाशन जगत के अर्थशास्त्र पर चर्चा की। उन्होंने अपनी लेखन से प्रकाशन के उद्यमी के रूप में यात्रा की बात की। उन्होंने प्रकाशकों के समक्ष आ रही चुनौतियों – अनुवाद, वितरण प्रणाली,लाभ सहयोग, विषय सामग्री निर्माण , मीडिया पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि – प्रकाशकों के लिए सरकार को एमएसएमई की भांति लोन व फण्ड की व्यवस्था करनी चाहिए। वहीं विजय कुमार धूपति ने भीमबेटका का उदाहरण देते हुए कहा कि —मैनें भीमबेटका में हजारों वर्षों पूर्व की आदि भाषाओं के प्रकाशन को चित्र के रूप में देखा। उन्होंने नए प्रकाशकों को प्रकाशन क्षेत्र पर न आते देख चिंता जाहिर की। उन्होंने भारतीय भाषाओं में प्रकाशन पर चर्चा करते हुए कहा कि – हमारे सामने बौद्ध ह्रास , प्रकाशन संस्कृति की समस्या है । भारतीय भाषाओं में अनुवाद के लिए स्काॅलरशिप की व्यवस्था हो, संस्कृति मंत्रालय इस दिशा में प्रयास करे। भाषायी विशेषज्ञों को तैयार कर ही हम अपने भारतीय प्रकाशन को नया सवेरा दे सकते हैं।
वहीं सत्र में अगले वक्ता के रूप में – प्रणव गुप्ता ने ने भारतीय प्रकाशन बाजार के बड़े स्वरूप पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि – हम प्रकाशन क्षेत्र में विश्व के तीसरे बड़े देश हैं। चार हजार से अधिक प्रकाशन हैं। और इस बाजार से दस मिलियन डॉलर का व्यवसाय वार्षिक होता है। हमारे पास स्कूल शिक्षा का बड़ा बाजार है। हमें विश्व की भांति ट्रेड बुक मार्केट का निर्माण करना पड़ेगा। हम प्रकाशन में केवल पुस्तक प्रकाशन ही नहीं बल्कि ओटीटी, वेबसीरीज, ऑडियो बुक सहित तकनीक के साथ प्रकाशन में उतरना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने अनुवाद का बड़ा बाजार उपलब्ध कराया है, हमें इसे जानना पड़ेगा। और लोकल टू ग्लोबल के सिरे को प्रधानमंत्री मोदी के – जय अनुसंधान के नारे को चरितार्थ करना चाहिए। हमें ‘अनुवाद गिल्डस ऑफ इण्डिया’ बनाने की ओर भी आगे कदम बढ़ाने होंगे। अमेरिका और इंग्लैंड की भांति भारत में भी लेखन को पेशेवर रुप देना चाहिए।
सत्र के अंतिम वक्ता के रूप में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के निदेशक युवराज मलिक ने कहा कि – अमृतकाल में भारत के साहित्य की गरिमा को विश्व पटल पर पहुंचाना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है। केन्द्र सरकार ने प्रत्येक राज्य को उसके सभी गांवों में पुस्तकालय खोलने की व्यवस्था की है। और अब दिल्ली — लेह से लद्दाख तक पहुंचती है। एनबीटी 55 भाषाओं में प्रकाशन करती है। और मैंने अपने अभी तक के कार्यकाल में 350 से अधिक पुस्तक मेले आयोजित करवाए हैं। पहली बार बौध्दि भाषा में हमने पुस्तक प्रकाशित की है। हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फार्मूले पर काम करते हुए एनबीटी के माध्यम से देश भर में काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत और भारतीयता का प्रतिनिधित्व करने के लिए संकल्पित है। हम विविधता में एकता का उत्सव मनाते हैं, यही कार्य हमें भारतीय भाषाओं के प्रकाशन में करना है। आगे युवराज मलिक ने कहा कि – कोई भी सफल नेतृत्वकर्ता एक अच्छा पाठक होता है। और अमर होने के लिए पुस्तकों से बड़ा कोई साधन नहीं हो सकता है। प्रकाशन जगत के समस्त सुझावों, उत्कृष्ट कंटेंट का हम स्वागत करते हैं । और हमारे ध्येय में भारत की विविध भाषाओं, क्षेत्रीय भाषाओं एवं बोलियों की उर्वर भूमि हैं। हमें इन्हें बढ़ाने के लिए अग्रसर रहना पड़ेगा। अनुवाद में भी चुनौतियां हैं, लेकिन हमें सतत् नवाचारों के लिए काम करना पड़ेगा। भाषा हमारे लिए ज्ञान, कौशल और मूल्यों के सम्वर्धन वाली हो। यही प्रकाशन जगत की साहित्य में भूमिका हो। सत्रावसान के समय प्रश्नोत्तरी पर वक्ताओं ने श्रोताओं के प्रश्नों पर विचार विमर्श किया। और अध्यक्षीय उद्बोधन के समाहार के साथ श्रीधर बालन ने कहा कि — समस्त रचनात्मक सुझावों के साथ प्रकाशन क्षेत्र उत्कृष्टता के साथ ‘भारतीय भाषाओं में प्रकाशन’ के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
