

लघुकथा
विश्वास
वैभव अपनी दादी का लाडला पोता था। हो भी क्यों न, चार बहनों के जन्म के बाद उसका जन्म जो हुआ था। उसके जन्मोत्सव पर दादा-दादी ने पूरे गांव को दावत दी थी। देखते-देखते आज़ वही लड़का एक सुन्दर-सुशील नौजवान बन गया था।
घर में दादी का ही राज चलता था इसलिए उसकी बहनों को ज्यादा पढ़ाया-लिखाया नहीं गया और जल्दी ही सबकी शादी कर दी गई थी। लेकिन वैभव चूंकि दादी का लाडला था इसलिए उसे पढ़ने के लिए विदेश भेजा गया। आज़ वह अपनी पढ़ाई पूरी करके स्वदेश लौट रहा था। परिवार के सभी सदस्य पलक-पांवड़े बिछाए उसके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
वह आया तो उसके साथ एक गोरी मेम भी आई। उसे देखकर सब आश्चर्यचकित रह गए कि यह कौन है? सबके मन में बस एक ही सवाल सिर उठा रहा था कि कहीं वैभव ने इसके साथ शादी तो नहीं कर ली? दादी, जो पोते के स्वागत के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक थीं, वे एक अज्ञात भय से आशंकित नजर आ रही थीं।
खैर, सबको प्रणाम करने के बाद वैभव ने ये राज़ खोल ही दिया कि वह लड़की उसकी मंगेतर है और वह उसके साथ यहां पर ही शादी करेगा। दादी की खुशियों पर तो जैसे वज्रपात ही हो गया। उन्हें वैभव से यह उम्मीद नहीं थी। उन्होंने तो उसके ब्याह के लिए न जाने कितने सपने सजा रखे थे। एक से बढ़कर एक खानदानी घरों के रिश्ते वैभव के लिए आ रहे थे। वे तो बस उसके आने का ही इन्तजार कर रही थीं कि उसके आते ही वे एक-एक लड़की को अलग-अलग उनके घर जाकर देखेंगी और फिर जो उन्हें पसन्द आएगी, उसे हां कह देंगी।
उन्हें वैभव पर पूरा भरोसा था कि वह उनकी पसन्द को ना नहीं कहेगा लेकिन इस विदेशी लड़की को यहां लाकर उसने दादी के सपनों पर पानी ही फेर दिया। कहां वो खानदानी रईस लड़कियां, कहां ये विदेशी लड़की? जिसका न खान-पान, न पहनावा, न बोलचाल और न ही इसकी संस्कृति हमसे मेल खाती है। और दान-दहेज तो भूल ही जाओ।
नाराज़ होकर दादी ने वैभव से बोलना बंद कर दिया।
यह देखकर वैभव की बहन ज्योति से रहा नहीं गया। उसने दादी को मनाते हुए कहा- ‘दादी! आप तो कहती हैं ना कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं, फिर ठाकुर जी ने वैभव के लिए अगर यही लड़की बनाई है तो आप नाराज़ क्यों हैं?’
‘चुप कर, कान्हा जी ऐसी बेमेल जोड़ी बनाकर नहीं भेजते। यह तो उस पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव है, जो कुछ दिन बाद समाप्त हो जाएगा और फिर मुझे अपना असली वैभव मिल जाएगा।’
परन्तु ज्योति जानती थी कि वैभव अपने फैसले पर अडिग था। आज़ दादी का ‘विश्वास’ डांवाडोल हो गया था।
– सरिता सुराणा
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका
हैदराबाद

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

हार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक महोदय।