लघुकथा : गंदी बात – रचना उनियाल बंगलुरु

लघुकथा

गंदी बात

मीरा और राहुल में आज फिर से कहासुनी हो रही है राहुल अपनी आदतों से बाज़ नहीं आता ,
अपने सामान को ढंग से रखना उसकी आदत में शुमार नहीं था।मीरा ज़ोर से चिल्लाई, “राहुल तुम कब समझोगे, ऑफ़िस से अभी आयी हूँ,
तुम्हारा सामान तितर- बितर है, तौलिया बिस्तर पर, जुटे शेल्फ़ से बाहर, पानी का गिलास सिंक के बजाय टेबल पर, तुम जानते हो ऑफ़िस के काम के बाद मैं भी थक जाती हूँ , थोड़ा तो घर को व्यवस्थित रखो।”
राहुल बोला,”तुम्हारी चिक चिक बंद नहीं होती,
अभी अभी ऑफ़िस से आया हूँ, ये ज्ञान थोड़ी देर बाद देती तो क्या हो जाता, जितना मुझसे होता है करता हूँ, बाज़ार का सभी काम कौन करता है बताओ ? तुमको मेरा कोई भी काम न तो नज़र आता है न ही तुम मेरी परेशानी व मन:स्थिति समझती हो।
ऐसा कहकर राहुल मीरा के बनाये नाश्ते को खाने लगा भूख भी ज़ोरों की लगी थी ग़ुस्सा दोनों ही थे। नाश्ता खाने के बाद उसने पेपर नैपकिन को ज़मीन पर फेंक दिया।
तभी उसका चार साल की बेटी दौड़ती हुई आयी और बोली,”पापा गंदी बात कचरा ऐसे नहीं फेंकते, इसको डस्ट बिन में डालिये।
राहुल जो पत्नी की बात नहीं सुनता था, बेटी की बात से इतना शर्मिंदा हुआ , उसने चुपचाप नैपकिन उठाया और कचरे के डिब्बे में डाल दिया।
मीरा का चेहरा खिल उठा।

रचना उनियाल
बंगलुरु

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