लघुकथा : नन ऑफ योर बिज़नेस बेबी – ज्योति जैन इंदौर

लघुकथा

नन ऑफ योर बिज़नेस बेबी

किताबे कुछ लोगों के लिए सफर में बड़ी अच्छी साथी होती है । सुनिधि उन्हीं लोगों में से एक थी। आज उसकी सहयात्री थी नरेंद्र कोहली की राम कथा *अभ्युदय*..। वह अपने शहर लौट रही थी। सामने वाली सीट पर बैठी संभ्रांत महिला की करीब दसेक साल की बच्ची ने उसकी किताब के शीर्षक को पढ़ने की नाकाम कोशिश की ..अ..अ..अ…और महिला ने मीठी डपट लगाई …”दैट इज नन आफ योर बिजनेस बेबी… वह किताब हिंदी में है। उन्होंने बच्ची को आईपैड दे दिया और खुद मोबाइल में व्यस्त हो गई। सुनिधि मन ही मन मुस्कुरा दी.. अच्छा है सफर में उसे यह मौन अनुकूल प्रतीत हुआ ।
कुछ हफ्ते बाद सुनिधि के घर की डोर बेल बजी ।दरवाजा खोला तो अपने सामने ट्रेन वाली मां बेटी को देख कर चौक पड़ी ।। वे दोनों भी चौंकी.. फिर बेटी चहक उठी …अरे मम्मा यह तो वही ट्रेन वाली आंटी है ना.!
सुनिधि ने उन्हें ससम्मान भीतर बुलाया और प्रायोजन पूछा ..।
देखिए मैम ….वे बोलीं..”मेरे हस्बैंड का ट्रांसफर इसी शहर में हुआ है और हम आपकी ही कॉलोनी में रहने आए हैं..। किसी परिचित ने बताया कि आप कॉलेज में हिंदी पढ़ाती हैं। एक्चुअली ….मेरी बेटी हिंदी में जरा.. वीक है तो….तो..यदि आप…गाइड….
सुरभि के कानों में यात्रा के शब्द तैरने लगे ….दैट इज नन आफ योर बिजनेस बेबी…!

ज्योति जैन
इंदौर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here