लघुकथा : पहचान – अंजना वर्मा , बेंगलुरू

लघुकथा

पहचान

रामजी बाबू काफी सुखी -सम्पन्न व्यक्ति थे, जिनकी उम्र साठ से ऊपर हो चली थी। दोनों बच्चे विदेश में सेट्ल कर चुके थे। उन्होंने अपने बच्चों को विदेश जाने और प्रवासी बनने से नहीं रोका था। लेकिन इन्हें अपनी भूमि से इतना प्रेम था कि अपना घर‌ और ज़मीन छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं थे। घर पर रहते हुए आराम से जीवन गुजार रहे थे। उनके करीबी दोस्तों में थे शैलेन्द्र जी और किशोर जी। अक्सर उन सबकी एक साथ बैठकी होती तो चाय-नाश्ते के साथ घंटों गप्पबाजी में गुजर जाते।
नौकर-चाकर की कमी न थी। लेकिन पारिवारिक जन के नाम पर कोई न था-पत्नी भी नहीं। अतः वे अकेले ही रहते थे।
कोविड की दूसरी लहर अपनी चरम सीमा पर थी। रोज़ कई लोग उसके शिकार हो रहे थे । इसी बीच रामजी बाबू को खाँसी ने जकड़ लिया। घबराए हुए वे डॉक्टर के यहाँ गए तो डॉक्टर ने कुछ दवाएँ लिखीं और जब वे क्लीनिक से बाहर निकल रहे थे तो शैलेंद्र जी ने उन्हें देख लिया। उनके मन में शंका हो गई कि कहीं इन्हें कोविड ने तो नहीं जकड़ लिया?
रामजी बाबू ने दवा खाई और दो-तीन दिनों में ठीक भी हो गए। अच्छे-खासे तंदुरुस्त रामजी बाबू सोफा पर बैठे हुए थे। आज तबीयत अच्छी लग रही थी तो उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वे कोविड के चंगुल में नहीं फँसे। उनकी आदत थी कि समय काटने के लिए मित्रों को फोन कर लिया करते थे। पूरे संतोष के साथ उन्होंने शैलेंद्र जी को फोन मिलाया। पर शैलेंद्र जी ने फोन नहीं उठाया। उन्होंने रामजी बाबू को क्लीनिक से निकलते हुए देखा था। अब उन्हें विश्वास हो गया कि राम जी बाबू कोविडग्रस्त हैं और सहायता के लिए फोन कर रहे हैं। फिर उन्होंने फोन किशोर जी को मिलाया तो उन्होंने भी नहीं उठाया। ऐसा ही कुछ विचार उनके मन में भी आया कि जरूर किसी -न -किसी मुसीबत में है रामजी बाबू कि फोन कर रहे हैं।
इधर रामजी बाबू सोचने लगे कि क्या बात है मेरे मित्रों ने फोन नहीं उठाया? कहीं वे भी कोरोना वायरस से ग्रस्त तो नहीं हो गए? तो जब लॉकडाउन टूटा और सब लोग अपने घर से निकले सब्जी-भाजी के लिए तो रामजी बाबू भी पैदल चल पड़े शैलेंद्र जी के यहाँ।
उनका घर थोड़ी ही दूर पर था। शैलेंद्र जी भी बाहर निकलने की तैयारी में थे। जैसे ही उन्होंने रामजी बाबू को दरवाजे पर देखा तो वे चौंक पड़े “आप?”
रामजी बाबू ने कहा, “तुम इस तरह क्यों चौक पड़े? क्या मैं तुम्हारे यहाँ नहीं आ सकता हूँ?”
” नहीं-नहीं, आप जरूर आ सकते हैं।”
रामजी बाबू ने कहा, “तुमने मेरा फोन नहीं उठाया तो मुझे डर लग गया कि कहीं तुमको कोविड ने तो नहीं जकड़ लिया ? इसीलिए मैं देखने चला आया कि तुम कैसे हो? तुम्हें बाजार के लिए निकलते देखकर बहुत अच्छा लगा । चलो, अब जाता हूँ अपने घर । यह समय नहीं है घूमने का कि मैं तुम्हारे यहाँ बैठूँ और बातचीत करूँ।”
यह कहकर रामजी बाबू अपने घर की ओर चल दिए। शैलेंद्र जी मन-ही-मन बहुत लज्जित थे कि उन्होंने अपने दोस्त के विषय में क्या सोच लिया ? वह सहायता नहीं करना चाह रहा था और राम जी बाबू उसकी सहायता के लिए द्वार पर आ पहुँचे थे।

अंजना वर्मा
बेंगलुरू-560103

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