

प्राण की वंशी
तुम न आए! प्राण की वंशी अभी निष्प्राण है
साँझ सोई इस अलसती
रात की मृदु गोद में
तारिकाएँ श्वेत गंगा
की पलक से झाँकती है
नील सर के नील शतदल
पत्र पर हैं राह तकते
मन्द बहती है पवन पर
फिर भी लगता त्रासती है
प्यास अपने कण्ठ ले कर
चिर वियोगन जागती है
तुम न आए! प्राण की वंशी अभी निष्प्राण है
झुरमटों से हैं महकते
बाग, बन, उपवन मनोरम
श्वेत, रक्तिम, पीत पुष्पी
लिग्गियाँ पथ में टँगी है
चुलबुले कलहंस सर में
संग भ्रमरों की ये सरगम
कूकती कोयल किनारे
मधुमास जैसे माँगती है
बिन तुम्हारे इस हृदय में
शूल जैसी सालती है
तुम न आए! प्राण की वंशी अभी निष्प्राण है
–रामनारायण सोनी
इंदौर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
