

लघुकथा-
‘डिफरेंस’
पचास के दशक में।
गिरधारी लाल- “क्यों रे कैलाश! पास हुआ कि फेल?”
कैलाश(पिता के पैर छूते हुए)- “जी पिताजी! मैं पास हो गया।”
गिरधारी लाल- “शाबाश! जा, मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ा आ… ये ले पैसे।
अस्सी के दशक में।
कैलाशनाथ- “बेटा गोपाल! कौन से डिवीजन में पास हुआ?”
गोपाल(दूर से ही धीमी आवाज में)-“बाबूजी सेकण्ड डिवीजन बना है, पाँच नंबर से फर्स्ट डिवीजन रह गया।”कैलाशनाथ (सांत्वना देते हुए)- “चलो कोई बात नहीं, अगली बार और अच्छे-से तैयारी करना। और सुन…तेरी माँ से बोल,आज कुछ मीठा बना ले।”
बीस साल पहले।
गोपालदास- “कितना पर्सेंट बना निखिल?”
निखिल- “पापा! एट्टी नाइन पर्सेंट बना।”
गोपालदास – “ठीक है, अबकी बार नाइंटी क्रास होना चाहिए…तेरी मम्मी को बोल देना शाम को बाहर खाना खाने चलेंगे।”
वर्तमान में।
निखिल- “कौन-सी पोजिशन बनी क्लास में ?”
जिमी(बड़े अफसोस के साथ)- “पा! सिर्फ पाइंट वन से रह गया,नहीं तो फर्स्ट पोजिशन बनती…मेरा नाइंटी सेवन पाइंट फाइव बना और और नंबर वन का पाइंट सिक्स।”
निखिल( उदास लहजे में)- “ओह…शिट…तुमने मुझे अपसेट कर दिया… कोई पूछेगा तो क्या कहूंगा ?”
जिमी की माॅम फेसबुक चलाते हुए दार्शनिक अंदाज में सोच रही थी…’खुशी और ग़म के बीच सिर्फ ‘पाइंट वन’ का ही ‘डिफरेंस’ रह गया…इसके बाद आगे क्या होगा…??
-कमलेश व्यास ‘कमल’
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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

वर्तमान का कटु यथार्थ बयां करती अच्छी लघुकथा। बहुत-बहुत बधाई।