काव्य : बेटी की आकांक्षा – सिद्धि केसरवानी प्रयागराज

बेटी की आकांक्षा

समय गुजरते वक़्त नहीं लगता
बेटी के बड़ा हो जान पता ही नहीं चलता
कल ही घर में आई नन्ही परी
आज ना जाने कैसे इतनी बड़ी हो गई ll

बेटी तो होती ही है अपने पिता की जान
न जाने कब बन जाती अपनी मां का स्वाभिमान
कल ही उसने छोटे छोटे
कदमो से सीखा था चलना
आज पूरा किया अपने पिता का सपना ll

माँ बाप से कहना चाहूंगी एक बात
रखो अपनी बेटी पर विश्वास
पूरे करेंगी वो आपके सपने
राह में आये चाहे जितनी मुश्किलें ll

अंकिता, साक्षी, श्रद्धा को इन्साफ मिलेगा तभी
जब पिता अपनी बेटी का साथ छोड़ेंगे नहीं
बहुत दिखा दी आफ़ताब, साहिल जैसो ने मनमानी
अब शुरू होगी महिला सशक्तिकरण की कहानी ll

सिद्धि केसरवानी
पिता श्री मुकेश कुमार केसरवानी
प्रयागराज

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here