

कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती 31 जुलाई पर उनको समर्पित एक निबंध
ग्रामीण भारत, अंग्रेजों के द्वंद फंद, धन्ना सेठों के जुल्मों सितम ,बच्चों का मनोवैज्ञानिक रूप,नारी का अंतर्मन, हिंदी उर्दू पर पकड़ रखने वाले एक मात्र लेखक, कहानीकार,उपन्यासकार स्व प्रेमचंद जी उर्फ धनपत राय जी (मूल नाम) ही हैं जो अपनी सरल सहज दिल में उतरने वाली भाषा के कारण ग्रामीण इलाकों , से फ़िल्म उद्योग तक लोकप्रिय हो गए।पूर्वी उत्तर प्रदेश के साधारण से गांव लमही में पैदा हुए प्रेम चंद जी, अपनी लेखन कुशलता के, अपनी कहानियों व उपन्यासों के कारण सम्पूर्ण भारत में छा गए और अपनी हिंदी उर्दू मिश्रित भाषा शिल्प कला के कारण वह जन जन की पसंद बन गए और उनकी
कहानियां बड़े भाई साहब,ईदगाह,दो बैलों की जोड़ी ,पंच परमेश्वर, गुल्ली डंडा,बूढ़ी काकी, बड़े घर की बेटी, आदि और उपन्यास गबन ,गोदान,कर्म भूमि,रंग भूमि, सेवासदन, निर्मला ने उन्हें जन जन का लेखक बना दिया।एक बार कहानी पढ़ने के बाद बीच में छोड़ना नामुमकिन है और बार बार पढ़ने का मन करता है।इसलिए ही उनको, कलम का जादूगर या कलम के सिपाही कहा जाता था।वर्ष 1936 में उनके देहांत के समय तक हिंदी साहित्य व फिल्मी जगत के नामी गिरामी नाम बन चुके थे व आज तक अपने लेखन के कारण सब के दिलों में जिंदा हैं।और हमेशा हिंदी साहित्य में अमर रहेंगें।एक काव्यात्मक रचना से मैं इस निबंध को विराम देता हूँ जो उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व , शैली,शिल्प को उजागर करती है।
कलम के जादूगर।मुंशी प्रेमचंद।।
*।।1।*
हर कहानी उपन्यास में,
सरल सुगम भाषा।
*हिंदी उर्दू मिलन* को मिली,
थी एक नई आशा।।
सजीव चित्रण ने बनाया,
उन्हें *कहानी सम्राट*।
प्रत्येक पंक्ति में डाले प्राण,
हो ख़ुशी या निराशा।।
*।2।।*
प्रत्येक पात्र हो जैसे कँही,
जमीन से जुड़ा हुआ।
भावनायों,ओ वास्तविकता से,
मानों हो जड़ा हुआ।।
स्त्री मन के रहस्य या हों,
लड़कपन के खेल ।
हर रिश्ता कागज़ पर उतारा,
बच्चा या बड़ा हुआ।।
*।।3।*
आज़ादी आंदोलन और रुढ़िया,
या मन के अंतर्द्वंद।
गांव वालों की फाकाकशी या हों,
लाटसाहब के दँद फंद।।
हर पन्ना किताब का जिन्दगी की,
कहानी सुनाता हुआ ।
ऐसे थे वह *कलम के जादूगर*
कहलाते *मुंशी प्रेमचंद*।।
एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
