


फेरे चार या सात ?
बिना फेरो के शादी बड़ी अजीब महसूस होती है । बिना फेरो के कोई भीविवाह हिन्दू धर्म में पूर्ण नहीं माना जाता विवाह केवल स्त्रीपुरुष का मिलन ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन भी होता है | हिन्दू धर्म में अलगअलग क्षेत्रों में विवाह
संस्कारों की अलगअलग विधि पाई जाती है,अक्सर ७ फेरो का
जिक्र होता है, लकिन कई जगह ४ फेरो का भी ज़िक्र होता है , कई जगह आपको भी सुनने को शायद मिला होगा या मिलेगा, फेरे ४ होते है वचन सात ·
वैदिक नियमानुसार विवाह के वक़्त चार फेरों का ही विधान है। इनमें से पहले तीन फेरों में वधू आगे चलती है, जबकि चौथे फेरे में वर आगे चलता है। ये फेरे चार पुरुषार्थो- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं। तीन फेरों में वधू (पत्नी) की प्रधानता है, इसलिए वधु आगे चलती है वर पीछे ,।जबकि चौथा फेरा मोक्ष का है इसलिए चौथे फेरे में वर को प्रधानता दी गई है मोक्ष मार्ग के लिए वधु को वर का अनुसरण करना ही पडेगा इसलिए वर आगे रहता है वधु पीछे । राजस्तान के राजपूतो में शादी में आज भी चार ही फेरे होते है· राजपूत समाज के बुजुगो की मान्यता अनुसार राजस्थान के
प्रसिद्ध लोक देवता पाबू जी राठौड़ को एक बुढ़िया ने अच्छी नस्लकी एक घोड़ी भेट करी थी करते वक़्त यह भी कहा था जब भी उसके पशुधन की सुरक्षा के लिए उसको जरुरत होगी आप को तुरत आना होगा जो उन्होंने हर्ष के साथ स्वीकार कर ली , जब उनकी ( राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता पाबू जी राठौड़ ) की शादी हो रही थी और फेरो की रस्म चल रही थी तो उन्होंने तीन ही फेरे ही लिए थे जिसमें वधु आगे थी उसी समय उन्हें एक सूचना मिली की वृद्ध महिला की गायें लुटेरे लुट कर लेजा रहे है जिसने राठौड़ जी को घोड़ी दी थी तोराठौड़ जी अपने वचन अनुसार बीच फेरों में ही पशुधन की रक्षा के लिए जाने का निर्णय लिया और चौथे फेरे में आगे होकर फेरों की रस्म को चार फेरों में पूर्ण कर दिया और उसी वक्त पाबू जी युद्ध के लिए निकल पड़े| और उस वृद्धा के पशुधन की रक्षार्थ लुटेरों से लड़ते हुएशहीद हो गए थे|पाबू जी द्वारा अपने विवाह में फेरों के उपरांत बिना सात फेरे पूरेकिये ही बीच में उठकर गोरक्षा के लिए जाने व अपना बलिदान देने के बाद राजस्थान में राजपूत समुदाय में अब भी विवाह के दौरान चार फेरों और सात वचनों कि परंपरा है·अब सात की जगह चार फेरों का वास्तविक कारण तो बहुत सारे है पर हाँ आज भी राजस्थान में राजपूत समाज में सात की जगह चार फेरों व सातवचनों के साथ ही विवाह की रस्म पूरी की जाती है| और जा नकारी लेने पर पता चला देश के और भी कई राज्यों में सात कीजगह चार,पांच फेरों की रस्में निभाई जाती है| · वैदिक काल में भी चार फेरों से विवाह पूर्ण कराने का वर्णन
मिलता है|
अन्य मान्यता·
एक अन्य मान्यता के अनुसार जब तक तीन फेरे होते है तब तक न तो वधु वर की पत्नी हो सकती है, और न ही वर वधु का पति ! यानि की तीन फेरो तक तो दोनों के अलग -अलग तीन तीन फेरे माने जाते है यानि की 3+3=6 और जब चोथा फेरा होता है तो दोनों एक दुसरे के हो जाते है जो की 1 फेरा माना जाता है इस तरह से 7 फेरो का महत्त्व भी माना जाता है !· राजपूत महिलाएं भी फेरों की रस्म के समय जो गीत गाती है उनमें सिर्फ चार फेरे का ही जिक्र होता है-“पैलै तोफेरै लाडली दादोसा री पोती ,
दुजै तो फेरै लाडली बाबो सा री बेटी
अगणे तो फेरै काकां री भतीजी,चौ थै तो फेरै लाडली होई रे पराई |
कहीं कहीं लोकाचार एवं कुलाचार के अनुसार सात फेरे भी होते हैं, परंतु शास्त्राचार के मुताबिक चार फेरे ही होते हैं।· सात तो वचन होते हैं, जिन्हें स प्तपदी कहते हैं। अग्नि के सम्मुख पति सात वचन देता है और जी वन भर पालन करने की प्रतिज्ञा लेता है। विवाह संस्कार में शास्त्राचार, कुलाचार और लोकाचार, ती नों प्रकार के आचार होते हैं। शास्त्राचार के मुताबिक चार ही फेरे होते हैं।
सात फेरो को सात वचन के रूप में लोग मानते है · कुछ लोगो का मानना है फेरे ७ ही होते है लकिन उनके हिसाब से ,एकफेरा जब वर और कन्या को रोका जाता है उसे वो एक फेरा मानते है , ४ फेरे जो अग्नि के सामने , लिए जाते है , छठा फेरा जब माग भरने को मानते है और पाटा फेर को (आसान बदलना )सातवा फेरा मानते है .
– एस्ट्रो मनोज गुप्ता
दिल्ली

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
