काव्य : रोटी – सुरेश गुप्त ग्वालियरी विंध्य नगर बैढ़न

रोटी

रोटी चार प्रकार की,
प्रथम मातु के हाथ!
ममता औ वात्सल्य की
मिलती खुशबू साथ!!

दूजी रोटी प्रिये कर ,
मिले समर्पण भाव!
अपनापन इसमें दिखे,
भरे हृदय के घाव!!

तीजी रोटी बहू की,
जो देती है स्वाद!
भरती समझो पेट वह
देते रहिए दाद!!

चौथी रोटी गर मिले,
यदि “बाई” के हाथ!
नही स्वाद मिलता मगर,
हम जिंदा आबाद!!

सुरेश गुप्त ग्वालियरी
विंध्य नगर बैढ़न

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