हिंदी साहित्य भारती की पावस गोष्ठी में बरसा पावस रस

हिंदी साहित्य भारती की पावस गोष्ठी में बरसा पावस रस

भोपाल।
डॉ विकास दवे ,निदेशक साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश सँस्कृति परिषद ,भोपाल की अध्यक्षता, में हिंदी साहित्य भारती की पावस गोष्ठी में बरसा पावस रस ।
डॉ. राजेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ साहित्यकार एवं निदेशक रामायण शोध केंद्र , भोपाल के मुख्य आतिथ्य और डॉ.स्नेहलता श्रीवास्तव, अध्यक्ष हिंदी साहित्य भारती, मध्य प्रदेश के विशेष सानिध्य में सुरेश पटवा ने पावस व्याख्यान भारतीय ज्ञान परम्परा में वैदिक काल से आधुनिक काल तक की साहित्यिक सृजन यात्रा के दौरान पावस ऋतु के वर्णन को सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया।

डॉ विकास दवे ने भारतीय ज्ञान की परम्परा परिचर्चा करते हुए कहा कि साल के बारह महीनों में से वर्षा के चार महीने निकाल दिए जाएँ तो शून्य महीना बचेगा। वर्षा ही आठ महीनों का जीवन देती है। डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने रामचरितमानस के किष्किन्धा कांड में वर्णित पावस ऋतु वर्णन पर गहन चर्चा की। डॉ.स्नेहलता श्रीवास्तव ने रचनाकारों से आग्रह किया कि छंद परम्परा का पालन करते हुए रचना करें। हिंदी साहित्य भारती भोपाल की अध्यक्ष शेफालिका श्रीवास्तव ने संस्था की प्रगति पत्र प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर श्रीमती सुनीता शर्मा सिद्धि ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया और शेफालिका श्रीवास्तव ने उपस्थित साहित्यकारों का भावभीना स्वागत किया। श्रीमती मधूलिका सक्सेना की पुस्तक “मनकही” का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम का सुचारू संचालन वरिष्ठ साहित्यकार घनश्याम मैथिल ने किया।

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