

कहानी
नई सुबह!
सुबह के नौ बज चुके थे, मधुरिमा अपनी कामवाली( रेखा)के आने का इंतजार कर रही थी | मधुरिमा बारम्बार दरवाजे की ओर देखते हुए बेचैनी में इधर -उधर घूम रही थी |आज उसने गुस्से में अपने पति सौरभ से कहा कि.. रोज -रोज का इसका नौटंकी है, कुछ न कुछ नया बहाना बनाकर देर से आती है,उसकी प्रतीक्षा में समय से नाश्ता भी नहीं बना पाती हूँ |आज आने दीजिए उसे खूब डाँट लगाऊँगी|
पतिदेव उसकी बातें चुपचाप सुनते रहे,तभी दरवाजे की बेल बजी डिंग-डॉन्ग.
मधुरिमा ने जाकर झट से दरवाजा खोला, देखा कामवाली खड़ी थी…आज उसका चेहरा उतरा और सूजा हुआ था |मधुरिमा ने सोचा था कि, आज उसे खूब डाँट लगाऊँगी, किन्तु उसकी ऐसी दशा देखकर वो थम सी गई |
कामवाली का पति छोटू एक नंबर का शराबी और निकम्मा था| रोज खा -पीकर आता और बीबी बच्चों के साथ मारपीट करना नित्य ही उसकी आदतों में शुमार था| मधुरिमा ने भाँप लिया था, उसके पति ने फिर से पीकर रात में उसे मारा है| फिर अंजान बन वो पूछ बैठी, क्या हुआ रेखा तेरा चेहरा उतरा और सूजा हुआ क्यूँ है..? फिर तेरे पति ने तुझे मारा क्या? यह सुनते हीं कामावाली फफक -फफक कर रोने लगी और कहने लगी हाँ मेमसाब कल में वो मुझसे पीने के लिए पैसे माँग रहा था, तो मैंने कहा कि मैं तुझे पीने के लिए पैसे कहाँ से लाऊँ…जैसे -तैसे अपनी बेटियों को दो समय का खाना खिलाकर पाल रही हूँ, यह सुनते हीं वो मुझे मारने लगा, मुझे पीटते देख मेरी बेटियाँ रोने लगीं, तो वो उन्हें भी मारने लगा और फिर मुझे घर से निकाल देने की धमकी भी देने लगा | मेमसाब तंग आकर मैंने स्थानीय पुलिस थाना में उसकी शिकायत दर्ज करा दी, पुलिस वाले आए, उसे मार -पीटकर हाजत में बंद कर दिया है, मेमसाब कुछ दिन तो चैन से रहूँगी, जीना मुश्किल कर रखा है, कहते हुए वो अपने काम पर लग गईं |
रेखा दिनभर घर -घर में बर्तन -झाडू करके मेहनत से जो कमाती थी, उसका पति छीनकर पी-खा जाता था|
दो छोटी- छोटी बच्चियों के पालन -पोषण की जिम्मेवारी रेखा के ऊपर ही था |घर में सास थी, वो भी अपना बेटा का ही पक्ष लेकर रेखा को भला -बुरा कह कर घर से निकाल देने की धमकी दिया करती थी | रेखा मजबूर थी यह सब सहने के लिए |अपनी बच्चियों को लेकर आखिर वो जाती भी तो कहाँ..?
कुछ समय के उपरांत रेखा का पति बेल पर छूटकर पुनः घर आ गया |कुछ दिनों तक सब ठीक -ठाक रहा,फिर वहीं पीकर मारपीट करने का सिलसिला शुरू हो जाता था,अब हमेशा की यह बात हो गई थी| रेखा को तो मारता ही था, साथ में बच्चियों को भी मारता |रेखा को अपने बच्चियों को मारते देख बर्दास्त न होता था, उसने कहा कम से कम इन बच्चियों को तो मत मारो, इनके लिए करते ही क्या हो..? इन्हीं बच्चियों के लिए तो मैं जी रही हूँ और तुम्हारी क्रूरता को बर्दास्त कर रही हूँ, कहते हुए रेखा दोनों बेटियों को आँचल में छुपा दहाड़ मारकर रोने लगी | रोज एक -एक दिन इसी तरह गुजरता रहा |
एक दिन…. छोटू रेखा का पति शाम को जल्दी कुछ ज्यादा ही पी लिया था |न जानें क्यूँ उस दिन वो अपने पूरे बस्ती में घूम -घूमकर बड़े हीं प्यार से सबसे मिल रहा था, यह सब देखकर बस्ती वाले भी अचंभित थे कि, आज छोटू के व्यवहार में अचानक ऐसा परिवर्तन क्यों है..! यह बात उसकी पत्नी रेखा ने मधुरिमा को बताई, जब वो शाम को काम पर आई थी |
अगली सुबह….! मधुरिमा की कामवाली काम पर नहीं आई |मधुरिमा ने ग्यारह बजे तक उसकी प्रतीक्षा की,आस -पास के घरों में उसकी बस्ती से आने वाली बाइयों से पूछ -ताछ करने पर पता चला कि, कल रात रेखा के पति छोटू का देहांत हो गया है…¡एक पल के लिए मधुरिमा सकते में आ गई, किन्तु दूसरे ही पल उसने अपने चहरे पर संतोष का भाव लाते हुए कहा… अच्छा ही हुआ मर गया, था तो कौन सा सुख देता था..? बेचारी कितना दुख झेल रही थी | बस्ती वाले भी रेखा से सहानुभूति जता रहे थे, बस्तीवालों के मुख से भी यहीं बातें निकल रही थी, अच्छा हुआ चला गया, बेचारी को कितना तकलीफ देता था | रेखा के मुख पर कोई भाव न था.. उसकी आँखें सूखी हुई थी |
दस -ग्यारह दिनों के क्रियाकर्म के पश्चात आज पहली बार रेखा काम पर आई थी |उसके मुख पर एक सुकून सा झलक रहा था, क्योंकि कि अब वह सामाजिक बंधन की क्रूर बेड़ियों से मुक्त थी, एक नई सुबह .. नये जीवन की शुरुवात के साथ…!
– माधवी उपाध्याय
जमशेदपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
