समीक्षा: शब्दों से परे… एक रोचक निबंध संग्रह – (स्‍व) डा. सतीश शुक्ल,नवी मुंबई

पुस्तक समीक्षा :

शब्दों से परे… एक रोचक निबंध संग्रह

– (स्‍व) डा. सतीश शुक्ल, नवी मुंबई

शब्दों को ब्रह्म कहा जाता है। शब्द सम्प्रेषण व अभिव्यक्ति का मूल आधार है । शब्दों का पठन-पाठन और लेखन से अंतरंग व अन्नय संबंध है, लेकिन शब्द का अर्थ जब दूसरी भाषा मै स्थानांतरित हो जाता है तो उनका अर्थ ही बदल जाता है । यथा धोखा हिंदी में फरेब और मराठी में खतरा !
विपिन पवार का नया निबंध संग्रह कोरोना काल के दौरान 2020 में आया, जो उनके विभिन्न विषयों पर लिखे गए निबंधों का समुच्चय है। इनमें उनके यात्रा वृतांत भी सम्मिलित हैं । विपिन पवार का जन्म इटारसी मध्य प्रदेश में हुआ, शिक्षा भी वही और कार्यक्षेत्र राजभाषा विभाग, रेल विभाग हुआ । उन्होंने अनेक स्थलों पर अपने इस उत्तदायित्व को निभाया और रेल मंत्रालय में निदेशक (राजभाषा) के बाद वर्तमान में मध्य रेल मुख्यालय के उप महाप्रबंधक (राजभाषा) के पद पर कार्यरत हैं । अपने शासकीय दायित्वों के साथ उन्होंने साक्षात्कार, रिपोर्ताज समेत अनेक विधाओं में कार्य किया और शासकीय मुख पत्र (पत्रिका) का संपादन किया, उन्होंने रेलवे मंत्रालय के पूर्व महाविद्यालय में कुछ वर्ष अध्यापन कार्य किया। आप रेलवे मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय जैसे नागपुर, भोपाल मै भी पदस्थ रहे ।
उनकी इस पुस्तक की भूमिका में ‘अनाहत’ के संपादक विनोद कुशवाहा लिखते हैं ‘हमारी मातृभाषा राजभाषा के संदर्भ में यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक है । पुस्तक के मनोगत में लेखक विपिन पवार ने अपने जुड़ाव का जिक्र किया है। लेखन मेरे लिए प्रारंभ से ही बहुत महत्वपूर्ण रहा है । वह हमारी सोच को नई दिशा देता है, उनके अनुसार वाचक द्वारा बोला गया शब्द कोई अभिलेख नहीं होता और कालांतर में गर्त में चला जाता है । लेखन एक प्रक्रिया और अभ्यास है जो उन्हें गंभीरतापूर्वक चिंतन व मनन करने के लिए प्रेरित करता है। यह वर्तमान से पहचान कराता है।
प्रस्तुत संग्रह में 11 निबंध संकलित हैं, जिनमें विविधता और रोचकता के तत्व है। शब्दों की निराली दुनिया है । इसमें भारोपीय (इंडोयूरोपीय भाषा के शब्दों के तीन प्रमुख भाषाओं में प्रयोग करने से अर्थों में परिवर्तन आ जाता है। मराठी और हिंदी में प्रयुक्त होने वाल शब्दों के अर्थ भी अलग हो जाते हैं और जब बोले जाते हैं तो उनके समझने में अनर्थ (अर्थ बदल जाते हैं) हो जाता है । इसके अनेक उदाहरण उन्होंने लेख में प्रस्तुत किये हैं । संग्रह का उनका महत्वपूर्ण लेख हिंदी फिल्मों में स्टेशनों का महत्व प्रतिपादित करता है। मुंबई सेंट्रल, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस तथा अन्य स्टेशनों के प्लेटफार्मों का प्रयोग इस शूटिंगों को महत्वपूर्ण और रोचक (पिक्चर्सक्यू) भी बना देते हैं। इन स्टेशनों की भूमिका फिल्मों के किसी किरदारों से कम नहीं होती है, वरन् वह वास्तविकता प्रदान करते हैं। मुंबई के आसपास के स्टेशनों का चुनाव अत्यंत सुविधाजनक और कम खर्चीला होता है। उन्होंने कुछ दृष्टांत दिये हैं दूधसागर जलप्रपात का दृश्य, हिमालय ट्रेन के दृश्य ( लव इन शिमला या ‘दार्जिलिंग धूम’ आराधना) उनका मानना है हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी फिल्मों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राजभाषा हिंदी लेख में उन्होंने हिंदी के विश्वव्यापी स्वरूप को बतलाया है। इसमें एक महत्वपूर्ण लेख मन्दाकिनी गोगटे के उपन्यास पर है जो अरुणा (विकास) देसाई की पुत्री के कैंसर से जूझने की मार्मिक गाया है।
कुल मिलाकर यह संग्रह अपने लेखों के कारण पाठकों की दिलचस्पी बनाये रखने में सक्षम है।

शब्दों से परे (निबंध संग्रह)
ले. विपिन पवार,
परिदृश्‍य प्रकाशन, मुंबई,
मूल्य 225/-रु०

1 COMMENT

  1. बहुत सुंदर समीक्षा। डॉ शुक्ल द्वारा लिखित समीक्षा शब्दों के परे निबंध संग्रह के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। फिर भी समीक्षा पुस्तक का पूर्ण स्थान नहीं ले सकती। और लेखक विपिन पवार जैसा हो तो कतई नहीं। विपिन पवार एक सधे व मँजे हुए लेखक हैं। उनका शब्दों के परे निबंध संग्रह वास्तव में उनकी सोच व प्रतिभा का परिचायक है। हर निबंध स्वतंत्र व पूर्ण है। अपनी बात कहने में श्री पवार एकदम समय हैं और इस संग्रह से उन्होंने साबित भी किया है। उनको मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई।

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