काव्य : कार कारे घन – डॉ बीना सिंह “रागी ” भिलाई

कार कारे घन

भिलाई: मेघा की थाप पर झूम रहा मन
घन घन घन शोर करे कारे कारे घन
मिलने को आतुर है पी से तन बदन
व्याकुल है मनवा मेरा व्याकुल मधुबन
पीयूष नेह की छलकी है गगरी हमारी
जानू ना जानू मैं कैसी है ए खुमारी
कानों में गूंज रही गीत की गुनगुन
हरे भरे कुंज में लताएं निखर कर
तरुवर से लिपट रही जैसे बिखर कर
पुलकित आनंदित हर्षित है बाग उपवन
दर्शन से खिल उठा ह्रदय कानन
खुशबू से महक उठा इत्र जैसे हो चंदन
थिरक रही रागी अनुरागी कांचे आंगन
घन घन घन शोर करे कारे कारे घन
मिलन को आतुर है पी से तन बदन।

डॉ बीना सिंह “रागी ”
भिलाई

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