

आदित्य भारत- भारती
पैदा हुये, बचपन खिला, यौवन जिया,
अब वृद्ध हम सब हो चले,
कौन थे, फिर क्या हुये, फिर क्या से
हम क्या हुये और अब क्या हो गये।
यदि देश, वेश व काल की हम
सोच लें, हम खुद समस्या हो गए,
गौरव था अतीत का, वर्तमान में
है कहाँ, भविष्य में होंगे कहाँ।
विश्व के आचार्य थे, धर्म पालन में
धुरंधर, प्रकृति के प्रारम्भ थे,
आदि काल देश का, सर्वोच्च सत्ता
युक्त था, सारा जगत मुरीद था।
उत्कर्ष में हम श्रेष्ठ थे, उत्तुंग शिखरों
से निकल, सागर तलक हम एक थे,
ऋषि भूमि आर्यावर्त की, परम पावन
थी सुहावन और मनभावन सदा।
विद्या, कला, वाणिज्य, कौशल
आर्यावर्त का सब ओर था फैला हुआ,
सत्य वृत के सारथी, वचन पालन
के धनी भारतवर्ष में श्री हरिश्चन्द्र थे।
सन्तान हम सब हैं उन्ही की, पर
उस प्रगति की आज दुर्गति है महा,
धर्मच्युत करके हमें, आक्रांताओं ने
लूट की, लूटे सभी ऐश्वर्य थे ।
टुकड़े – टुकड़े कर दिया, बाँट कर
ऋषि भूमि भारत वर्ष की,
करके अपावन, देश पावन, धन धान्य
और दौलत सभी हर ले गये।
सोने की चिड़िया थे कभी हम, वह भी
विधर्मी मार करके ले गए,
कोहिनूर हीरा हमारा, चमकता था
नियारा, उसको फ़िरंगी ले गए।
विद्या, कला, कौशल्य, सारा नष्ट भ्रष्ट
करके, हमें करके दरिद्र चले गये,
गुरुकुल, हमारे आश्रम, मंदिर सहस्त्रों
वास्तु के उत्कृष्ट गौरव चिन्ह थे।
देवभूमि पावन, साक्षात हरि विष्णु,
शिव शंकर अवतार लेते थे यहाँ,
सतयुग में मत्स्य, कूर्म, वाराह व
नृसिंह हरि विष्णु के अवतार थे।
भारत भूमि के उद्धार हित, हर समय
हर काल में ये जन्मे थे यहाँ,
श्रीराम जी की अवध नगरी,
त्रेता में पावन जन्मभूमि थी।
खरदूषन, त्रिसिरा व बाली, पापी
महा रावण तथा अहिरावण बधे,
श्री कृष्ण द्वापर में हुए, मथुरा व
गोकुल में पले, वृंदावन विहारी भी बने।
कंस-वध कर, द्वारका आकर बसे,
कृष्ण लीला, गीता महाभारत रचे,
कलिकाल में भी यही गौरव अतीत
का इस देश में पाया गया ।
अब से सहस्त्रों वर्ष पहले, मान
मर्यादा हमारी पूर्ववत क़ायम रही,
फिर इस अनोखी पावन भारत
भूमि पर, नज़रें लुटेरों की पड़ीं।
गौरी, गजनी व सिकंदर भी इस देश को
आक्रांता बन लूट के जाते रहे,
महाराज पृथ्वीराज जैसे प्रतापी राजपूत
जयचंदों से छले जाते रहे।
भारत भूमि का गौरव मिटाने व्यापारी
फ़िरंगी इस भूमि में आते रहे,
स्वतंत्रता इस देश की परतंत्रता की
बेड़ियों में हर बार थी जकड़ी गई।
कब तक सहन करते ग़ुलामी,
स्वाधीनता, देशभिमान की जागृति हुई,
गौतम, नानक, गोविंद सिंह, रानी झाँसी,
तात्या टोपे, शिवा जी व सम्भाजी।
रामकृष्णपरमहँस,सरस्वती दयानंद,
स्वामी विवेकानन्द जी,
राम मोहन राय, मालवीय जी,
लाल, बाल, पाल और गांधी जी तथा।
नेहरू, सुभाष, पटेल, गोलबलकर,
राजेंद्र प्रसाद, अम्बेडकर भीमराव,
भगत सिंह, राजगुरु, राम प्रसाद बिस्मिल
दुर्गावती, आज़ाद चंद्रशेखर।
मौलाना आज़ाद, टैगोर रवींद्रनाथ,
चटर्जी बंकिमचंद्र आदि सभी
आज़ादी के दीवाने,सहते रहे,
लड़ते रहे, झेली सलाख़ें जेल की।
क़ैद थी काल कोठरी की, जेलों की
और फाँसी के फंदे गले में,
हँसते हँसते आज़ादी का आंदोलन
और ग़ुलामी भी सहते रहे।
1857 से 1947 तलक स्वाधीनता-
संग्राम आंदोलन चला,
तब कहीं जाकर, देश को आज़ादी मिली,
पर टुकड़े हुए इस देश के।
भुखमरी, ग़रीबी, निरक्षरता, कंगाल
कोषागार थे विरासत में मिले,
बेरोज़गारी, बेकारी, व्यापार सारा
शून्य करके अंग्रेज ब्रिटेन चले गए।
नव निर्माण का दौर दौरा,
योजनायें पंचवर्षीय बनती गयीं,
सम्विधान बनकर देश का, देश में
लागू हुआ, सरकार फिर अपनी बनी।
बागडोर देश की देश वासियों को मिली,
सरकारें बनी और फिर बनती रहीं,
उत्तरोत्तर नव निर्माण में, देश की
नव प्रगति में देशवासी हैं लगे।
अनेकता में एकता का सूत्र
प्रतिपादित रहे आत्मनिर्भर हम बने,
धीरता, गम्भीरता से देश यह
आगे बढ़े, सपने सभी साकार हों।
एक बार फिर से हम विश्व मात्र को
नव दिशा दें, विश्व-गुरु फिर बने,
परम उत्कर्ष भारत वर्ष का, पुन: हमको
प्राप्त हो, ऐश्वर्य और गौरव बढ़े।
विज्ञान भी, साहित्य भी, इतिहास भी,
पांडित्य भी हर पल बढ़े, बढ़ता ही रहे,
आदित्य भारत- भारती, भगवान
भारतवर्ष का मानव महा मानव बने।
कर्नल आदि शंकर मिश्र,आदित्य
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
