लघुकथा : रंगत – सुमन सिंह चन्देल मुजफ्फरनगर

लघुकथा

रंगत

“क्या बात है!”
“चेहरे पर नूर है, हमें भी बता दो क्या कर रही हो …”
कुछ दिनों से उसमें आए बदलाव से खुश उसकी सहेलियां गाहे बगाहे उसको छेड़ती रहती हैं ।
“क्या राज है बताओ न!”
दूसरी ने कहा।
“मैं किसी को चाहने लगी हूं।”इठलाते हुए सुनिधि ने कहा।
“अच्छा,किसे? हम भी तो जाने कौन है वो भाग्यशाली!”
सबने एक सुर में लगभग गाते हुए पूछा।
आदमकद शीशे के सामने खड़ी सुनिधि ने अपनी परछाई की ओर इशारा कर दिया।

सुमन सिंह चन्देल
मुजफ्फरनगर

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