काव्य : असफलता स्वीकार करो – सीमा त्रिपाठी,प्रतापगढ़

असफलता स्वीकार करो

क्या सोच रहे हो बैठे-बैठे तुम
धरती बनो या अंबर तुम
जो कल करना है आज करो
मेहनत से ना घबराओ तुम
क्या सोच रहे हो बैठे बैठे तुम
यह जीवन ना मिलेगा दोबारा
क्यों ना समझे तू फिरता आवारा
समय तो यूं ही निकल जाएगा
बाद में होगा सिर्फ पछतावा
क्या सोच रहे हो बैठे-बैठे तुम
रख सब्र जीवन के संघर्ष में
तेरा समय भी कटेगा हर्ष में
कब तक अंधेरा टिक पाएगा
रवि उदित होगा जगजीवन में
क्या सोच रहे हो बैठे-बैठे तुम
कुछ कर जाने की लगन बहुत
पैदल चलना है कठिन बहुत
डरता क्यों है तू आगे बढ़
करनी पड़ेगी कोशिश बहुत
क्या सोच रहे हो बैठे-बैठे तुम
असफलता मिले तो स्वीकार करो
अपनी कमियों पर विचार करो
नींद चैन त्याग कर डटे रहो
सफल होकर रहूंगा ऐसा मन में संकल्प करो
क्या सोच रहे हो बैठे-बैठे तुम

सीमा त्रिपाठी
शिक्षिका साहित्यकार लेखिका
लालगंज प्रतापगढ़

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