काव्य : एक पत्र भावी पति के नाम – उर्वी वानया सिंह मुजफ्फरनगर

एक पत्र भावी पति के नाम

मेरे प्यारे,
भावी पति!

मुझे जिंदगी काटनी नहीं है,
मैं जीना चाहती हुँ तुम्हारे साथ।
मेरा जीवन साथी बनने से पहले मुझे
अपना दोस्त बना लेना।
मैं ज़्यादा कुछ नहीं चाहती तुमसे,
बस जैसे मैं तुम्हारे घर आकर सबको अपनाऊँगी,
वैसे ही तुम भी मेरे परिवार को अपना लेना,
देना उन्हे प्यार और इज़्ज़त बेशुमार।
हाँ, फिर एक वादा मैं भी करती हूँ तुमसे,
तुमसे ज़्यादा तुम्हारे परिवार को प्रेम करने की।
हाँ रह लूँगी माता-पिता के साथ गाँव में
तुम बेफिक्र हो कर करना नौकरी,
हम दोनो अपना कर्त्तव्य निभायेंगे
दूर रह कर भी प्यार और वफ़ादारी निभायेंगे,
एक-दूसरे को हमेशा हम बेशुमार चाहेंगे।
कर देना अपना हर दु:ख मुझसे साझा,
बन जाना इतने मेरे जैसे हम एक ही हो।
हाँ मैं चाहती हूँ खाना तुम्हारे लिए मैं ही पकाऊं,
पर मेरे रूठ जाने पर अपने हाथो से बना खाना खिला देना।
मुझे महंगे तोहफ़े नहीं पसन्द
बस तोहफ़े में कुछ किताबे दे देना।
जब कभी बिमार हो जाऊँ
किताबे पढ़ कर सुना देना|
मैं ज़्यादा कुछ नहीं चाहती तुमसे
बस सबके सामने मेरी गलतियाँ छुपा कर
मुझे अकेले में उनके बारे में समझा देना।
हाँ, देख लूँगी तुम्हारा बचकाना गुस्सा भी
बस जो मेरे नखरे हो उन्हें तुम उठा लेना।
हाँ, सवारेंगे हम बच्चों को मिलकर।
पर जो लडाइयाँ कभी होंगी हमारे बीच
वो तुम बस हम तक ही रहने देना|
और फ़िर जब बूढें हो जायेंगे
संभाल लेंगे एक-दूसरे को मिलकर
बढ़ जायेंगे अध्यात्म की ओर साथ मिलकर।
या फ़िर वादा कर देना
दोबारा मिलने का फ़िर किसी जन्म में।
ऐसे ही हँसी ख़ुशी में जिंदगी गुज़र जायेगी।

“प्रेम :-दूसरे को अपना इतना बना लेना की उससे कुछ छिपाने को ना रहे,
दूसरे को अपना इतना मान लेना कि जैसे कि वह तुम ही हो।”

तुम्हारी
भावी पत्नी


उर्वी वानया सिंह
मुजफ्फरनगर(उत्तर प्रदेश)

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