

बाल गंगाधर तिलक:एक राष्ट्रवादी और समाज सुधारक – सुनीता मलिक सोलंकी मुजफ्फरनगर
परिचय–
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले मे केशव गंगाधर तिलक के रुप मे हुआ था। उनका पैत्रिक गांव सांगमेश्वर तालुका के चिखली में स्थित था। जब वो 16 साल के थे, तो उनके पिता गंगाधर तिलक का निधन हो गया था, उनके पिता पेशे से एक अध्यापक थे।
आदर्श राष्ट्रवादी –
किशोरावस्था से ही, तिलक एक उत्साही राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों मे भाग लेते थे और उनका समर्थन करते थे। उनका दृष्टिकोण काफी हद तक कट्टरपंथी था, और उनकी मांग स्व-शासन और पूर्ण स्वराज से कम कुछ भी न था।
उन्होने ब्रिटिश विरोधी आंदोलन और उनके विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों का खुलकर समर्थन किया, जिसके कारण उन्हें इसके लिए कई बार जेल भी जाना पड़ा। 1916 के लखनऊ संधि के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मे शामिल हो गए, हालाकि उनका यह मानना था कि स्वतंत्रता की मांग के लिए कांग्रेस को और अधिक कट्टरपंथी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
कांग्रेस मे रहकर तिलक ने महात्मा गांधी के साथ काम किया और वो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लोकप्रिय नेताओं मे से एक हुए। तिलक ने 1916-18 मे एनी बेसेंट और जी.सी. खापर्डे के साथ मिलकर अखिल भारतीय होम रुल लीग की स्थापना की थी।
बाल गंगाधर तिलक को जेल..!
औपनिवेशिकवाद का कैसा समय रहा होगा, क्रांतिकारियों के पक्ष में अपनी अखबार “केसरी” में लिखने की सज़ा आज के दिन वर्ष 1908 में 6 वर्ष की जेल हो गई। जबकि यह “लोकमान्य” थे। मूल नाम “केशव गंगाधर तिलक” एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे।
ब्रिटिश प्राधिकारी इन्हें भारत में अशांति का दूत कहते थे। जेल में भी इन्होंने “गीता रहस्य” 400 पन्नों की पुस्तक लिख डाली।
समाज सुधारक –
एक राष्ट्रवादी और देशभक्त होने से साथ-साथ तिलक एक समाज सुधारक भी थे, जिन्होने समाज मे कई सामाज परिवर्तन का काम किया। गणेशोत्सव पर्व के भव्यता प्रदान करने का श्रेय भी इन्ही को दिया जाता है, इससे पहले सिर्फ घरों मे ही गणेश की पूजा की जाती थी। जुलूस, संगीत और भोजन के साथ त्योहार को धुमधाम से मनाने का श्रेय सिर्फ तिलक को ही जाता है।
निष्कर्ष-बाल गंगाधर तिलक का निधन 64 वर्ष की आयु मे 1 अगस्त 1920 को ब्रिटिश भारत के बाम्बे मे हुआ। तिलक नेता के रुप मे इतने लोकप्रिय थे, कि उन्हे ‘लोकमान्य’ अर्थ दिया गया था, जिसका अर्थ है कि लोगों की सहमति या उनके विचारों का प्रतिनिधित्व करना है।
– सुनीता मलिक सोलंकी
मुजफ्फरनगर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
