महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक – रेखा सिंह ,पुणे

महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

जी हाँ !यह कथन हमारे देश के वीर सपूत ,क्रांतिकारी ,देशभक्त महानायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी का था।गुलामी के जंजीरों से जकड़ी भारत माता की आजादी का बिगुल बजाया था। सोई जनता में जागृति लाये थे।
मित्रों ” !स्वराज्य” का अर्थ समझते हैं न?
अपना राज्य या राष्ट्र। हमारा देश तो हमारा था। विश्व मे सोने की चिड़िया कहलाता था। जिस समय विश्व ए बी सी डी सीख रहा था उस समय हमारे देश में वेद -पुराणों की रचना हो गई थी।तक्षशिला और नालंदा दो बड़े विश्व विद्यालय खुल चुके थे।भारत विश्वगुरु कहलाता था। लेकिन एकता के अभाव में हमेशा विदेशी आक्रमण का शिकार हुआ। फलतः हमारे देश में कभी अफगानी ,कभी मुगलों कभी अंग्रेजों की सत्ता रही।
जिस समय बाल गंगाधर तिलक का जन्म जुआ था उस समय देश में ईस्ट इंडिया कंपनी अपना पैर जमा चुकी थी । भारतीय जनता अंग्रेजों द्वारा तरह -तरह से प्रताड़ित हो रही थी ।
ऐसे ही संक्रांति काल में हमारे लोकनायक स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था और मृत्यु 1 अगस्त 1821 को हुई थी।
बचपन से मेधावी छात्र रहे।
बल गंगाधर तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी शिक्षक , समाज -सुधारक और एक स्वतंत्रता सेनानी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक केल में उन्होने अपने नये विचारों को रखा और अमल भी किये।वे भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस के गर्म दल के नेता थे।कांग्रेस में एक संधि बनाई जिसमें विपिन चंद्र पाल , लाला लाजपत राय,अरविन्द घोष और मौहमंद अलि जिन्ना शामिल थे।
1908 में क्रन्तिकारी खुदरा बोल और प्रफुल्ल के बम बिस्कुट में समर्थन देने के कारण मंडेला जेल भेज दिया गया।
उन्होने कुछ समय तक स्कूल -कालेज में गणित पढ़ाया।बाद में भारतीय शिक्षा -नीति में सुधार लाने के लिए पुणे में डेक्कन शिक्षा संस्थान की स्थापना की। वे इंग्लिश के विरोधी थे।
उन्होने मराठी में “केसरी”तथा इंग्लिश में मराठा दर्पण ” दो समाचार पत्रों का संपादन किया।इन समाचार पुणे के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता जन-जन को बताया।तथा अपनी संस्कृति की महत्ता को समझाया।यही नहीं गणेश -उत्सव और शिवाजी -छयंति को छन-जन का बतलाया।वे बाल-विवाह के विरोधी थे। उन्।ओने अपने छः वर्ष के कारावास में “गीता दर्शन पर किताब लिखी।
अंततः स्वतंत्रता -संगॉम के इतिहास में उनका योगदान अमूल्य है।जब हम इतिहास के पन्नों को उलझते हैं और ये पढ़ते हैं –स्वराज्य हमारा जनयुद्ध अधिकार है और उसे लेकर रहेंगे–तब -तब लोकनायक बाणगंगा तिलक की याद आती है।हम बार -बार गौरवान्वित होते हैं।धन्य माई के लाल ।शत-शत नमन।

रेखा सिंह
खराड़ी ,पुणे
महाराष्ट्र

2 COMMENTS

  1. बहुत सुंदर आलेख। बधाई रेखा सिंह जी।

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