

लघुकथा
चलो उठो ….!
पच्चपन साल का साथ और अब वो चली गई , कभी सोचा ही नहीं सविता के बग़ैर भी जीना पड़ेगा ,गमगीन से न जाने कब से एक कोने में बैठे ख़ाली कमरे को देख रहे थे सतीश जी ….
लग रहा था बस अभी आयेगी और कहेगी “ चलना नहीं है क्या ? आप तैयार नहीं हुए देखो मैं तो आपसे पहले तैयार हो गई …..”
“उठो चलो “सच में दूसरी तरफ से आवाज आई । सोच के दायरे से बाहर निकल कर देखा तो सविता की बड़ी बहन सरिता जी अपना हाथ आगे बढ़ाये चलने का इशारा कर रही थी ।
“अरे कब तक यूँही बैठे रहेंगे कमरे में बंद . …
चलो बहुत हुआ ।”और सहारा देकर जहां
सारा परिवार इंतज़ार कर रहा था सतीश जी को बाहर हाल में ले कर आ गई ।
बड़े से पर्दे पर एक फ़िल्म चल रही थी जो सरिता जी के निर्देशन में बनी थी । दो साल पहले ही सरिता जी ने करोना काल में अपना पति खोया तब उन्हें समझाने और फिर से नये सिरे से जीवन को जीने के लिये प्रोत्साहित करने के लिए ही ये कहानी लिखी थी सतीश जी ने ।
सविता ने अपना निर्देशक बनने का सपना साकार करते हुए एक शार्ट फ़िल्म बना दी ,हर तरफ जिसकी चर्चा और वाहवाही हो रही थी । फ़िल्म देखते देखते सतीश जी को भी लगा सच जितना समय पत्नी के साथ सुख से बीत गये वो तो वापस नहीं आयेंगे । पर अब बची हुई ज़िन्दगी में तो कुछ और नये सुख के पन्ने जोड़े जा सकते है , खुद दुखी रह कर अपनों को दुखी करना ठीक नहीं,जीवन का मतलब ही आगे बढ़ना है ।
सतीश जी तारीफ़ और आभार प्रकट करने के लिये कुछ फूल और मुस्कान के साथ सरिता की तरफ़ चल दिये ।
–कुन्ना चौधरी
जयपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
