काव्य : चन्दा के घर जाने की – डॉ राजीव पाण्डेय ,गाजियाबाद

चन्दा के घर जाने की

संकल्पों के हम साधक हैं,
डरते कब विपदाओं से।
नया कदम ही बढ़ जाता है,
सीखा है गाथाओं से।

वर्ष करोड़ो की अभिलाषा,
चन्दा के घर जाने की।
चौखट पर रख दिया कदम है,
बस देरी अंदर जाने की।

अटल इरादों के स्वामी है,
चट्टानों से टकराते।
मुट्ठी में आकाश किया है
और समंदर पी जाते।

तीन डगों में तीन लोक को,
हमने सदा ही नापा है।
सिंह गर्जना सुनकर अपनी,
भूमंडल भी काँपा है।

पँख दिखाने को होते हैं,
उड़ान हौसले भरते हैं।
उनके सम्मुख दुनिया वाले,
देखे पानी भरते हैं।

वो ही विक्रम कहलाता है,
सम्परकों से दूर रहे।
अविचल अडिग संयमी होकर,
अपनी गाथा स्वयं कहे।

भारत माता का यश गौरव,
और मान बढ़ जाता है।
चन्दा मामा की चौखट पर
चन्द्रयान चढ़ जाता है।

हुए जनक शून्य के हम ही,
गायन उन महिमाओं का।
दुनिया लोहा मान रही है,
वैज्ञानिक प्रतिभाओं का।

सिद्ध हमें करने को कोई
रही न बिल्कुल शंका है।
दुनिया भर में देखो बजता
अब भारत का डंका है।

आटोग्राफ कोई मांगता,
और बॉस बतलाते हैं।
इसीलिए हम आज तलक भी,
विश्व गुरू कहलाते हैं।

डॉ राजीव पाण्डेय
वेवसिटी ,गाजियाबाद

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