काव्य : रिहाई – डॉ वासिफ़ काज़ी इंदौर

रिहाई

नफ़रतों को….. क़ैद से रिहाई दे रहा है ।
शख़्स वही मुहब्बत की दुहाई दे रहा है ।।

किये थे वादे…… साथ रहने के जिसने ।
वही ताउम्र की……….. जुदाई दे रहा है ।।

आँख में……. ख़ुशी के आंसू लिए कोई ।
बाप अपनी बेटी को….. बिदाई दे रहा है ।।

उसकी अस्मत को रखा था मेहफ़ूज़ मैंने ।
तोहफ़े में वो ही मुझे….. रुसवाई दे रहा है ।।

डॉ वासिफ़ काज़ी
इंदौर

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