ज्ञान की भूमि ‘बोधगया’ व मोक्ष भूमि है ‘गया’ – निधि नीतिमा, मुजफ्फरनगर

ज्ञान की भूमि ‘बोधगया’ व मोक्ष भूमि है ‘गया’

आज मैं बिहार राज्य के पवित्र जिला गया, और बोध गया के स्वर्णिम इतिहास का संक्षिप्त परिचय की जानकारी दे रही हूँ।
मैं स्कूल के समय से ही बिहार के स्वर्णिम इतिहास से प्रभावित थी। बिहार में जन्मे आर्यभट्ट, चाणक्य, विक्रमादित्य, राजा अशोक, तक्षशिला नालंदा विश्व विश्वविद्यालय आदि से बहुत प्रभावित थी । आज कुछ लिखने का मौका मिला तो मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं ।
आइए हम भगवान बुद्ध की स्थली ज्ञान की भूमि’ बोधगया ‘व मोक्ष भूमि ‘गया’ के बारे में बात करते हैं।
गया जी भारत के बिहार राज्य में स्थित एक जिला मुख्यालय व बिहार का सबसे बड़ा दूसरा नगर है। यह तीन तरफ से छोटी पथरीली पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जिनके नाम मंगला गौरी, श्रंग स्थान, रामशिला, व ब्रह्म योनि है। यह फल्गु नदी (पूर्व नाम निरंजना नदी) के किनारे स्थित है । इसका नाम गया कैसे पड़ा ,इसकी भी एक कहानी प्रचलित है, कि प्राचीन काल में गयासुर नामक राक्षस के आतंक को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने उसकी छाती पर पैर रखकर उसको वश में किया और उसे यह वरदान दिया कि रोज एक मृतक शरीर व पिंडदान अवश्य अर्पित किया जाएगा। यदि किसी दिन कोई मृत्यु नहीं होती तो प्रतीकात्मक रूप से एक पुतला जलाया जाता है और उसका उसी वक्त पिंडदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो गया सुर फिर जीवित हो उठेगा और अपना आतंक मचाएगा ।उसी के शरीर पर पूरा गया शहर बसा है और जहां पर विष्णु भगवान ने उसकी छाती पर पैर रखा था वह पद चिन्ह आज भी है और वहीं पर विष्णुपद मंदिर बना हुआ है ।गया को मोक्ष की भूमि भी कहा जाता है क्योंकि भगवान राम के पिता दशरथ जी का पिंडदान वही हुआ था। कहते हैं कि राम लक्ष्मण जी के आने में देर होने के कारण मां सीता ने बालू का पिंड बनाकर फल्गु नदी के समीप गाय, केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी मानकर दशरथ जी के निमित्त श्राद्ध कर्म किया। जब राम लक्ष्मण ने सीता जी से प्रमाण मांगा था ,तो वटवृक्ष को छोड़कर सभी मुकर गए। महाराज दशरथ की आत्मा ने खुद आकर स्वीकार किया तब राम लक्ष्मण को यकीन आया, पर माता सीता ने झूठ बोलने के कारण केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह पूजा में नहीं चढ़ाया जाएगा फल्गु नदी को हमेशा सूखा रहने और गाय को पूजनीय होने के बावजूद जूठाखाने का श्राप मिला। यहां पर मां मंगला गौरी शक्ति पीठ है जो सती माता के वक्ष स्थल के रूप का प्रतीक है ।यहां पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है और ऐसी मान्यता है कि जो सच्चे मन से यहां पर आता है उनकी मां मंगला गौरी पूजा स्वीकार करती हैं और आशीर्वाद देती है। यहां पर कालचक्र मैदान है जहां पर कालचक्र मेला लगता है जिसमें बौद्धों के सबसे बड़े गुरु दलाई लामा भी आते हैं और अपना आशीर्वाद अनुयायियों को देते हैं।
आइए अब बात करते हैं बोध गया की,, बोधगया, गया जिले से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। लगभग 501 वर्ष पूर्व बोधगया में ही भगवान बुद्ध को फल्गु नदी के तट पर पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था ,तब से यह जगह बोधगया और वह दिन बुद्धपूर्णिमा के नाम से जाना गया। बोधगया को प्राचीन काल में उर् बेल संमबोधी, वज्रासन और महाबोधि नाम से जाना जाता था। यहीं पर महाबोधि मंदिर बनाया गया ,जो सम्राट अशोक द्वारा निर्मित है। यह बौद्ध मंदिरों में सबसे पुराना मंदिर है, जिसमें आज भी गुप्त काल की ईटें प्रयुक्त है। सबसे पहले चीनी पर्यटक फाहियान 404-405 ईस्वी में इसका वर्णन किया था, उसके बाद 637 ईसवी में हवेनसांग ने इस जगह का वर्णन किया। यह जगह विशेष रूप से आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए विख्यात है, जिस पीपल वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था वह आज भी पांचवीं पीढ़ी के रूप में स्थित है। विश्व के विभिन्न देशों से विभिन्न संप्रदाय और धर्म के व्यक्ति यहां पर आध्यात्मिक शांति की तलाश में आते हैं। इसे यूनेस्को ने 2002 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया था ।यहां के मंदिर की वास्तुकला देखते ही बनती है जो कि द्रविड़ वास्तु शैली कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। बोधगया में एक से अधिक स्थान ऐसे हैं यदि आपने नहीं देखे तो आप बिहार या ,भारत कीअनुपम विरासत या धरोहर को देखने से वंचित रह जाएंगे। इनमें प्रमुख नाम है थाई मठ, रॉयल भूटानी मठ, जापानी मंदिर ,महाबोधि मंदिर ,मंगला गौरी तीर्थ ,बुद्ध भगवान की ऊंची प्रतिमा, डुंगेश्वरी गुफा, सूर्य मंदिर और पुरातत्व संग्रहालय ।
पूरा गया, बोधगया अपने आप में एक अनुपम जगह है। लिखने को तो बहुत कुछ है, परंतु आशा करती हूं कि मेरा यह लेख आपको पसंद आए। मैं पुनः हार्दिक धन्यवाद करती हूं अपने मित्र सत्यम जी का जो कि गया के ही निवासी हैं और उन्होंने ही वहां के बारे में मुझे संपूर्ण जानकारी प्रदान की।

निधि नीतिमा,
मुजफ्फरनगर

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