काव्य : मनहरण घनाक्षरी छंद,नवग्रह वंदन – अरविंद सोनी “सार्थक” रायगढ़ छ ग

नवग्रह वंदन

मनहरण घनाक्षरी छंद

सहज सरल और, सुलभ उपाय सुनों,
कैसे नवग्रह कृपा, पाए जन जन है!

भोर भानु भले अर्घ्य, देना हम भूल जाए,
ऊषा पान करने से, रोग मुक्त तन है!

चंद्रमां समान शांत ,रहे मन मोती बिन,
चांदनी को ओढ़ सोए , लगाए चंदन है!

चाँद को चकोर जैसे, मनोयोग से निहारे,
अद्भुत ही तेज और, बल पाए मन है!

मंगल प्रबल करें, देकर के रक्त दान,
बहाए न खून कभी, दिव्य यह धन है!

बुध बल बुद्धि दाता, हरे विघ्न को विधाता,
घास पर धरें पग, निरोगी नयन है !

गुरु को मनाना हो तो, घूम आए विद्यालय ,
सदा श्रेष्ठ ज्ञान दाई , गुरु को नमन है!

शुक्र की मेहरबानी, चाहिए तो माताओं का,
मान रखें सदा मानों, शक्ति का पूजन है!

शनि से राहत यदि, चाहिए तो बात सुनों,
निर्बल के साथ खड़ा, होना बढ़प्पन है!

राहु पर काबू यदि, रखना जो आप चाहे,
काबू रखें भूख पर, संतोष जीवन है!

केतु करवाए कर्म, अपनाए सत धर्म,
करम धरम हरि, सार्थक वंदन है!

नवग्रह की अपार, कृपा जन जन पाए,
संयम नियम से ही , जीवन पावन है!

अरविंद सोनी “सार्थक”
रायगढ़ छ ग

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