

जहाँ देखो वहां विकास की गंगा बह रही
इटारसी में चंद मिनटों के लिए बरसात आती है और इटारसी के विकास की गंगा चहुँओर बहती नज़र आती है। कल मंगलवार की बात ले लें शाम को करीब 15-16 की बरसात की बात करें तो इटारसी की सड़कें विकास की सच्ची गाथा सुनती दिकाही दे रही थी।
इस साल नवम्बर में विधान सभा चुनाव होने हैं और ऐसे में इटारसी के ऐसे दर्शन भाजपा को फिर एक बार विधानसभा में पहुँचाने वाले तो कतई नहीं दिख रहे। पिछले साल इसी माह नाव निर्वाचित नगर पालिका परिषद ने केवल मतदाताओं को अपना बनाये रखने के ताबड़तोड़ कार्यक्रम किये। प्रदेश से अनेक योजनायें लोकार्पित की गई लेकिन ये जो पब्लिक पता नहीं सब जानती है कि नहीं पर इस बरसात के नज़रों को देख रही है और समझ रही है।
अतिक्रमण ऐसी समस्या जो नगर पालिका परिषद की स्वजनित समस्या है। अपने चहेतों के अतिक्रमण की अनदेखी करने में औरों की भी दाल जमके पक रही है वो पूरे शहर को महका रही है। गली मोहल्लों की गलियों को तो छोड़ दें नगर के प्रमुख मार्ग भी इससे जमकर पटे पड़े हैं। ऊपर से नगर पालिका के इंजिनियर और ठेकेदार भी न जाने किस मिटटी के बने हैं कि उन्हें इसको देख कर रत्ती भर भी शर्म आती होगी ऐसा नहीं लगता।
जहाँ रेस्ट हाउस के पीछे की जमीन का स्वरुप बदलने वाला है उसी के दोनों तरफ की उत्तर दक्षिण सड़कें अवतल होकर बरसाती पानी को बेजा स्थान दे रही हैं और यहाँ से गुजरने वाले दुपहिया वाहन अपने पहियों के दोनों ओर गंदे पानी को उछालते हुए लोगों के मन को मोह रहे हैं। वहीँ सेंट जोसफ कान्वेंट स्कूल की एक ओर की चारदीवारी नाली को निगल चुकी है और सड़क पर बरसाती पानी की रोज नई गाथा आने जाने वालों के कपड़ों पर लिख रही है।
एकमात्र रोड ओवर ब्रिज जो 1998 में बनकर लोकार्पित हुआ था उसकी हालत तो ऐसी है कि पता नहीं चलता कि सड़क पर गड्ढों की संख्या कितनी है। वैसे लोग ये तो भूल ही गए होंगे लेकिन फिर भी याद दिला दूं कि इसी ब्रिज पर कई लोगों की जान लेने का आरोप भी है।
कभी नाला मोहल्ला तरफ से मेहरागांव के रस्ते पर पड़ने वाले नाले की पुलिया पर खड़े होकर नज़र डालकर देखें तो पता चल जायेगा कि इस नाले के बहाव के किनारे की कितनी मिटटी गायब हो चुकी है। जो गायब हुई है उसे बहा ले जाने की ताकत तो बिलकुल इस नाले की जिसे मेहरागांव की नदी भी कहते हैं मजाल तो नहीं थी। कौन लोग इस मिटटी से अपना विकास कर गए उनके बारे में समर्थ लोग भलीभांति जानते ही होंगे।
खैर जब भी बरसात होती है अच्छा लगता है लेकिन सडकों पर बहता पानी जो नालियों के चोक होने या उचित निर्मित न होने के कारण गन्दा होकर लोगों पर पड़ता है तो बुरा लगता है।
इंजी बी बी आर गाँधी
स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
