काव्य : सुनो रे भैया जें तरकारी – श्रीमती श्यामा देवी गुप्ता दर्शना भोपाल

बुंदेली हास्य कविता

सुनो रे भैया जें तरकारी

सुनो रे भैया जें तरकारी,
का कै रयीं हैं तुमसें।
आलू खौं तौ बना कैं राजा,
करों किनारों हमसें।।

लौकी,भिंड़ी और तुरैयैं,
रही नैं अब तौं पीछे।
सबनें अपनी धाक जमा लई,
लैहो नैं अब तुम कैसें?

लाल टमाटर ताव दिखा रयें,
बैंगन मूँछ मरोरैं।
अदरख, धनिया, मिर्ची सबरे,
ताल ठोक कैं ठांड़े।।

खड़ों कटहल जों बनो दरोगा,
और करेला नीम चढ़ो।
मोटो कदुआ डटो सामनें,
घुइयों कों सुई भाव बढ़ों।।

परवल की सुई आँखैं आईं,
टिन्डे तनकई नैं शरमाएँ।
बात करैं हम कौन ,कौन की,
सब तरकारी रौब कसैं।।

सबई धरें अब मौनई ठांडे,
का कुई सैं अब कौन कहें।
धरें कड़ैया लपटा रांधें,
सब तरकारी हास करैं।।

श्रीमती श्यामा देवी गुप्ता दर्शना
भोपाल मध्यप्रदेश

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