पुरातत्वविद् प्रो.झा की स्मृति में हुआ काव्य -संग्रह का विमोचन व सम्मान समारोह

प्रो.विवेक झा के द्वारा कराए गए उत्खनन कार्य ने इतिहास के बंद पड़े पन्ने खोले – डॉ.सुरेश आचार्य

काव्य जगत का क्षितिज/कैनवास व्यापक है- डॉ.राकेश शर्मा

एक काव्यांजलि जो प्रकृति के बहाने मानवीय संवेदनाओं की बात करती है – डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पुरातत्वविद् प्रो.झा की स्मृति में हुआ काव्य -संग्रह का विमोचन व सम्मान समारोह

सागर।
देश के नामचीन पुरातत्वविदों में पहचाने जाने वाले सागर विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास,संस्कृति एवं पुरातत्व विभागाध्यक्ष रहे प्रो. विवेक दत्त झा को स्मरण करते हुए नगर की प्रतिष्ठित संस्था श्यामलम् ने रविवार को दीपक सभागार सिविल लाइन सागर में स्व.झा की धर्मपत्नी डॉ.अंजलि एवं पुत्री डॉ.गरिमा झा द्वारा “सागर किनारे” – एक काव्यांजलि शीर्षक से रचित संग्रह का विमोचन समारोह आयोजित किया।
‌ इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. सुरेश आचार्य ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. अंजलि झा अपने समर्थ दर्शन और सामाजिक चेतना की कविताओं के लिए सदैव याद की जाएंगी। उनकी रुचि का विषय होने के कारण विभिन्न समसामयिक विषयों पर अपने विचारों से उन्होंने साहित्य को संपन्न किया है। जीवन के प्रति एक गंभीर चिंतन उनकी रचनाओं की विशेषता है। गरिमा झा की रचनाएं अपनी भावनात्मक और प्रभावी रचनाओं के द्वारा हमें अभिभूत कर देती हैं। मैं उनमें एक बड़ी संभावना देखता हूं।जब वे लिखती हैं “फिजाएं नज्म हो गईं घटाएं सरगम, ग़ज़ल – ओ- शेर की गली आज फिर आबाद हो गई”। यह पंक्तियां पढ़कर उनकी रचनाएं उनकी उम्र से बड़ी लगने लगती हैं।प्रोफेसर विवेक झा का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि वे विश्व विख्यात पुरातत्वविद् माने जाते हैं। अनेक जगहों पर उन्होंने उत्खनन कार्य कराया और इतिहास के बंद पड़े पन्ने खोले।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए लेखक, स्तंभकार डॉ.राकेश शर्मा ने कहा भारतीय जनतंत्र संवाद की भूमि है और संवाद मानव जीवन की हर समस्या/रोग की औषधि है।कविता भी संवाद का एक मधुर व प्रभावी माध्यम है। डा.अंजलि झा एवं डा. गरिमा की दिवंगत प्रो. विवेक दत्त झा को समर्पित “सागर किनारे” काव्य कृति प्रसन्नता, प्रेम और प्रेरणा से परिपूर्ण भावांजलि है। जिसमें लेखक द्व्य के संवेदनशील मन ने सांसारिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को सुंदरता से भाव स्पर्श किया है।
महाश्वेता देवी की इन पंक्तियों से प्रो. झा साहिब का स्मरण और नमन करता हूँ।
“आ गये तुम! द्वार खुला है अंदर आ जाओ,
अपनी व्यस्तताएँ बाहर खूँटी पर टाँग आना!
जूतों के संग नकारात्मकता भी उतार आना।
चाय चढ़ाई है, प्रेम और विश्वास की मध्यम आँच पर..घूँट-घूँट पीना!
सुनो,इतना मुश्किल भी नहीं है जीना।”
मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने कहा कि “सागर किनारे’ एक ऐसी काव्यांजलि है जो प्रकृति के बहाने मानवीय संवेदनाओं की बात करती है। इस कृति का बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ विवेकदत्त झा जी की स्मृति में लोकार्पित होना अपने आप में महत्वपूर्ण है। डॉ विवेकदत्त झा पुरातत्वविद, इतिहासकार, रंगमंचीय व्यक्तित्व, कुशल प्रशासक होने के साथ ही साहित्य की गहरी समझ रखने वाले व्यक्ति थे। उनकी पत्नी डॉ अंजलि झा एवं पुत्री डॉ गरिमा झा का यह काव्यसंग्रह उनकी काव्यात्मक प्रतिभा का परिचायक है तथा प्रशंसनीय है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि आई एम ए अध्यक्ष डॉ.मनीष झा ने स्व. विवेक झा के साथ सागर जिले के समस्त पुरातत्व स्थलों के किए गए भ्रमण और डाक्यूमेंट्री निर्माण से जुड़े अनेक संस्मरणों को साझा किया। प्रो.झा के अभिन्न मित्र रहे स्व.डॉ. रमेश चौबे की कनाडा से आई पुत्री रुचि चौबे और मुंबई से आई पुत्रवधू शैफाली ऋतुपर्ण चतुर्वेदी ने भी अपने विचाररखे।.नागेश दुबे ने डॉ झा का जीवन परिचय देते हुए उनके मार्गदर्शन में बिताए महत्वपूर्ण क्षणों को स्मृत किया। कार्यक्रम में डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व के विभागाध्यक्ष और प्रो.झा के शिष्य डॉ. नागेश दुबे को “विवेक दत्त झा संस्कृति एवं पुरातत्व सम्मान 2023” से अलंकृत किया गया। ज्ञातव्य है इस सम्मान के प्रथम वर्ष में डॉ.मोहन लाल चढ़ार को प्रदत्त किया जा चुका है। सम्मान पत्र वाचन रमाकांत शास्त्री ने किया।
काव्य कृति “सागर किनारे” का विमोचन कर्मस्थली सागर में ही कराने का उद्देश्य लेकर नोएडा से आईं लेखिकाद्वय डॉ.अंजलि एवं डॉ.गरिमा झा ने अपने वक्तव्य में सागर के प्रति स्व.झा के स्नेह को रेखांकित करते हुए रोचक प्रसंग सुनाकर द्रवित कर दिया।उन्होंने आयोजक संस्था श्यामलम् व सागर के नागरिकों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर लेखिकाद्वय का सम्मान भी किया गया।
मां सरस्वती एवं विवेक सर के चित्रों पर माल्यार्पण और अतिथि स्वागत उपरांत महिला काव्य मंच की प्रदेशाध्यक्ष सुनीला सराफ ने सरस्वती वंदना का और प्रसिद्ध गायक शिवरतन यादव ने स्मृति गीत का प्रभावी गायन किया। डॉ.चंचला दवे,कपिल बैसाखिया, हरी शुक्ला, डॉ विनोद तिवारी, डॉ अंजना चतुर्वेदी तिवारी एवं डॉ सुजाता मिश्रा ने अतिथि स्वागत किया। श्यामलम् अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र ने कार्यक्रम परिचय दिया। कुशल व व्यवस्थित संचालन ईएमएमआरसी के प्रोड्यूसर माधवचंद्र चंदेल ने किया तथा श्यामलम् के सह सचिव संतोष पाठक ने आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रबुद्ध वर्ग की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही जिनमें डॉ विनोद दीक्षित, प्रो.रायजादा,डॉ गजाधर सागर, डॉ आशीष द्विवेदी, डॉ लक्ष्मी पाण्डेय,अंबिका यादव, डॉ.आर के तिवारी,कुंदन पाराशर, डॉ अमर जैन, डॉ आशुतोष गोस्वामी,मुकेश तिवारी, हरि सिंह ठाकुर, पूरन सिंह राजपूत, कवि कुमार सागर,कपिल चौबे, गोविंद सरवैया, सुश्री उषा बर्मन, डॉ मनोज श्रीवास्तव, डॉ. संतोष शुक्ला, डॉ सुषमा शुक्ला, प्रो‌ रामेश्वर नाथ, ममता भूरिया, डॉ अभय सिंघई, डॉ वेद प्रकाश दुबे, डॉ के के त्रिपाठी, डॉ प्रदीप शुक्ला, उषा पाराशर, डॉ जी एल दुबे, डॉ अतुल श्रीवास्तव,पी एन मिश्रा,टी आर त्रिपाठी,पी आर मलैया,अयाज सागरी, आशुतोष मिश्रा, रमेश दुबे, डॉ नवनीत धगट,प्रफुल्ल हलवे, अरविंद जैन,एम शरीफ, असगर पयाम, विवेक शर्मा, बी डी उपाध्याय, के के त्रिपाठी , डॉ आर आर पांडे की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

डॉ चंचला दवे,सागर

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